आज के युग में मनुष्यों को विभिन्न प्रकार की नयी नयी बीमारियाँ प्राप्त होती जा रही हैं| चिकित्सा के क्षेत्र में भी बहुत प्रगति हो गयी है फिर भी हम ऐसे रोगों से ग्रस्त होते जा रहे हैं| जो असाध्य से हो गए हैं| दरअसल हम लोगों ने शारीरिक श्रम करना बहुत कम कर दिया है| शरीर को बहुत अधिक आराम देना आरम्भ कर दिया है| कोई भी शारीरिक श्रम हम नहीं करना चाहते हैं| जानवरों की भांति बिना विचार किये दिनभर अधिक मात्रा में खाद्य अखाद्य का हम सेवन करते हैं| उचित समय पर उचित आराम भी हम नहीं करते हैं| यह हमारे शरीर में रोगों को उत्पन्न करने और एक रोग समाप्त न होने के पूर्व ही कई दूसरे रोगों को आमंत्रित करने का काम करता है| हम अपनी प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं और हमारा अप्राकृतिक रहन सहन हमारे शरीर को अंदर से खोखला करता जा रहा है|

इससे बचने के लिए सर्वप्रथम दिन भर अधिक मात्रा में खाद्य और अखाद्य का का सेवन बंद करना देना चाहिए| हमें इस बात की ध्यानपूर्वक जांच करनी चाहिए कि कौन सी वस्तु का उपयोग करने से और कौन सी वस्तु के संपर्क में आने पर हम रोगग्रस्त हो जाते हैं| इस बात को जान कर उससे अपने को दूर रखने का प्रयास करना चाहिए|

इस के साथ साथ व्यायाम, योग साधना एवं प्राणायाम तथा शारीरिक परिचालन की क्रियायों द्वारा हम रोगों से अपने को दूर रख सकते हैं|इन्हीं क्रियाओं में एक स्वास्थ्यवर्धक तथा सहज प्रक्रिया है ताली बजाना| मंदिरों में आरती,पूजा,भजन- कीर्तन के समय श्रद्धालुजन ताली बजाया करते हैं| जो शरीर को स्वस्थ रखने का एक अत्यंत उत्कृष्ट साधन है| हिंदुओं की साधना-पद्धत्ति में ताली बजाना एक आवश्यक प्रक्रिया रहा करती है| ताली बजाने में न तो कोई व्यायाम करना पड़ता है न ही कोई योग साधना परन्तु हम अनजाने में ही एक सर्वश्रेष्ठ सहज योग का महत्वपूर्ण प्रयोग कर लेते हैं|

ताली बजाने से श्वेत रक्तकण सक्षम और सशक्त बन जाते हैं| जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ़ जाती है| शरीर के अधिकतम एक्यूप्रेशर पॉइंट्स हाथों की हथेलियों और पैरों के तलवों में होते हैं| मात्र पांच-दस मिनट ताली बजाने से हाथों के एक्यूप्रेशर पॉइंट्स पर जोर पड़ता है जिससे एक उत्कृष्ट प्रकार का व्यायाम शरीर में प्रारम्भ होने लगता है| इससे शरीर की निष्कियता खत्म होकर उसमे क्रियाशीलता बढ़ने लगती है| इससे रक्त संचार बढ़ जाने के कारण शरीर के किसी भाग में यदि रक्त संचार में कोई रूकावट या बाधा हो तो वो समाप्त हो जाती है| रक्त की नाड़ियाँ ठीक ढंग से तेजी के साथ रक्त को शुद्ध करने के लिए हृदय में ले जाती हैं और फिर उस शुद्ध रक्त को सम्पूर्ण शरीर में पहुंचा देती हैं| इससे शरीर में चुस्ती,फुर्ती और ताजगी आ जाती है| इस सहज और स्वाभाविक योग के द्वारा शरीर को बिना अधिक थकाए स्वयं को चुस्त, दुरुस्त और तन्दुस्त रख सकते हैं|