Friday, November 25, 2011

अशोक वर्मा की ग़ज़ल

आग,पानी,फूल,पत्ते और हवा रख जाऊँगा
इस चमन में खुशबुओं का मैं पता रख जाऊँगा।

रात में ठोकर मुसाफिर को लगे ना इसलिए
मैं गली के मोड़ पर जलता दिया रख जाऊँगा।

आने वाली नस्ल शर्मिंदा कभी होगी नहीं
ज़िंदगी जीने का मैं वो फ़लसफ़ा रख जाऊँगा।

इस अपाहिज वक्त पर तुम मत हँसो अय पत्थरो
शक्ल जो बदलेगा इसकी आईना रख जाऊँगा।

बाद मेरे जान लेंगे लोग सब मेरा हुनर
कुछ लिखा पन्नों पे और कुछ अनलिखा रख जाऊँगा।
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पुस्तक ' ग़ज़ल बोलती है " से साभार
चित्र - अशोक लव

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