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जब समुद्र मंथन हुआ तब कमलात्मिका लक्ष्मी उत्पन्न हुई। उन्होंने श्री महात्रिपुर सुन्दरी से ऐक्य प्राप्त करने हेतु बहुत आराधना की जिससे प्रसन्न होकर श्रीमहात्रिपुर सुन्दरी ने अपने में ऐक्य कर
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लक्ष्मी के अनेक भेद हैं जिसका विशेष वर्णन, पूजन, साधना आदि शाक्त प्रमोद स्तवन, नारद पंचरात्रा, मंत्रा महोदधि, श्री विद्यार्णव आदि ग्रन्थों में विस्तार पूर्वक वर्णन है। एकाक्षरी से लेकर चतुरक्षरी, अष्टाविंशति अक्षर मंत्रा आदि का वर्णन शास्त्रां में है। गुरु द्वारा पूर्ण रूप से साधक समझकर ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
इसके मंत्रा ध्यानादि के अनन्त भेद हैं। कमला वैष्णवी शक्ति है। महाविष्णु के लीला विलास की सहचरी कमला की उपासना जगदाधार, शक्ति की उपासना है। महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए मानव, दानव, देव आदि सभी लालायित रहते हैं। जितनी सांसारिक संपदाएं हैं वे इनकी कृपा से ही प्राप्य हैं।
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इस प्रकार इन तीनों को मिलाकर अष्टलक्ष्मी की उपासना करते हैं। मतभेद से दो रूपों में विभक्त कर अन्यान्य नामों से षोडशलक्ष्मियां पूज्य हैं जिनकी पूजा श्रीयंत्रा में की जाती है। विशेष पूजन श्रीसूक्त से किया जाता है।
महालक्ष्मी आद्या शक्ति हैं। लक्ष्मीजी सुवर्ण के समान कान्तिवाली स्मितवदना, कमलानना, कमल दल नयन युगला और अतिशय सुन्दरी हैं। लक्ष्मी उपासना के लिए श्री यंत्रा प्रमुख है। जिस पर श्री साधना की जाती है। श्रीयंत्रा पूजा में यति दण्डैश्वर्य विधान में सोलह आवरणों में सोलह लक्ष्मियों की पूजा होती है। एकादशावरण में स्पन्दिचक्र में गायत्राी के ३२ नामों से भी पूजा की जाती है। इस प्रकार गायत्राी साधना में भी श्री यंत्रा की महत्ता है।
तंत्रा साधना में बाह्य पूजा से अन्तर पूजा की महत्ता है। अन्तर योग से शरीरन्तस्थ नाडयों की जागृति होकर अन्तर चक्र जाग्रत होते हैं जिससे साधक के मन के संकल्पों की सिद्धि होती है।
लक्ष्मी साधना की दृष्टि से दीपावली के पांच दिवस अत्यन्त महत्त्व के हैं। धनतेरस से कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक रात्रिा में नव बजे से बारह बजे तक जो साधक बाला बीज के जप अथवा परा प्रासाद बीज के जप करता है, उस पर लक्ष्मी की अनन्य कृपा होती है। साधना गुरु द्वारा जान कर करने से श्रेष्ठ लाभ होता है। हरेक देवी-देवताओं की पूजा हेतु श्रीयंत्रा उपयुक्त है।
लक्ष्म्यादि मंत्रां का सूक्ष्म प्रयोग कूर्म पुराण एवं सार संग्रह में वर्णित है। लक्ष्मी के अनेक मंत्रा प्रयोग हैं। इनमें कुछ इस प्रकार हैं -
१. एकाक्षर मंत्रा - ’श्री‘। इसी को चिन्तामणि मंत्रा भी कहा गया है। इसम ’’सौभाग्य संपत्प्राप्तये जपे विनियोगः‘ का उच्चारण कर विनियोग करने के बाद में न्यास करके ध्यान करना चाहिए। इसके ऋषि भृगु, निचृत् छन्द और श्रीदेवता हैं। श्रां, श्रीं, श्रूं श्रै श्रौं श्रः - इनसे कर/षडंग न्यास/हृदय न्यास करने चाहिये।
ध्यान
कान्त्या कांचन सन्निभां हिमगिरि प्रख्यैश्चतुभिर्गजै।
र्हस्तोत्क्षिप्त हिरण्मयामृतघटै रासिच्य मानां श्रियं
बिभ्राणां वरमन्ज युग्म मभयं हस्तैः किरीटोज्ज्वलां
क्षौमा बद्धनितम्बबिम्बलसितां वन्देऽरविन्दस्थिताम।।
इस प्रकार ध्यान व मानसिक पूजा कर अनन्य चित्त से जप करने से सौभाग्य, सुख व लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
इसी प्रकार भगवती लक्ष्मी का चतुरक्षरी मंत्रा ’’ ऐं श्रीं हृीं क्लीं ‘‘ भी है। बाला के बीज ’’ ऐं क्लीं सौः ‘‘का जप भी ऐश्वर्य प्रदान करने वाला है। साम्राज्यलक्ष्मी एवं सर्वमंगला आदि त्रिापुरेशी की नित्याये हैं। किसी एक मंत्रा की विधि जानकर दीपावली के पांच दिवसों में रात्रि में जप करने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है। पुरश्चरण पद्धति से प्रयोग करने से अनन्त लाभ प्राप्त कर साधक सुखी होता है।
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