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अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु की पूजा अक्षत से होती है। अन्य दिनों में अक्षत के स्थान पर सफेद तिल का विधान है।
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आखातीज अर्थात् अक्षय तृतीया वैशाख शुक्ल पक्ष की परम पुण्यमती तिथि कहलाती है। कहा जाता है कि आज ही के दिन सतयुग प्रारंभ हुआ था इसलिए इसे युगादि तृतीया के नाम से भी जाना जाता हैइस दिन भगवान परशुराम का जन्म भी हुआ था इसलिए इसी दिन भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है।
इस दिन गंगा स्नान का भी भारी महत्व है।हयग्रीव का अवतार भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। मुख्यतः यह तिथि दान-प्रधान तिथि है। आज के दिन सत्तू अवश्य ग्रहण करना चाहिए।
वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। चूँकि इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे 'अक्षय तृतीया' कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महाफलदायक माना जाता है।
यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। यह व्रत दानप्रधान है। इस दिन अधिकाधिक दान देने का बड़ा माहात्म्य है। इसी दिन से सतयुग का आरंभ होता है इसलिए इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं।
निम्न मंत्र से संकल्प करें :-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।
संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं।
षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें।
भगवान विष्णु को सुगंधित पुष्पमाला पहनाएं।
नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें।
अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें।
अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए। इसके पश्चात उपवास रहें।
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