डॉ माखन लाल दास द्वार मेरी कविता --बाज़ और अधिकार
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बाज़ों के पंजों में
चिड़ियों का माँस देख
नहीं छोड़ देती चिड़िया
खुले आकाश की सीमाएँ नापना .
उड़ती है चिड़िया
गुँजा देती है-
चहचहाटों से आकाश का कोना-कोना,
बाज़ चाहे जिस ग़लतफ़हमी में रहें
चिड़िया नहीं छोड़ती
आकाश पर अपना अधिकार !
बाज़ों के पंजों में
चिड़ियों का माँस देख
नहीं छोड़ देती चिड़िया
खुले आकाश की सीमाएँ नापना .
उड़ती है चिड़िया
गुँजा देती है-
चहचहाटों से आकाश का कोना-कोना,
बाज़ चाहे जिस ग़लतफ़हमी में रहें
चिड़िया नहीं छोड़ती
आकाश पर अपना अधिकार !