किसी के श्रेष्ठ कार्यों की आलोचना करना बहुत आसान होता है। जो स्वयं कुछ नहीं करते वह दूसरों की आलोचना करते हैं। नकारात्मक सोच वाले हमारे आसपास ही होते हैं। वे स्वयं दुखी होते हैं और दूसरों को दुःख देकर संतुष्ट होते है। मैं वर्षों से इन्हें 'दुखी-आत्माएँ' कहता आया हूँ।
जो व्यक्ति स्वयं पर , अपने परिवार पर , अपने समाज पर , अपने देश पर गर्व नहीं करता उसे क्या कहा जाए ? वह दयनीय प्राणी है।
उसकी कुंठाएँ किसी न किसी रूप में प्रकट हो ही जाती हैं।
कुछ लोग समर्पित भाव से समाज की सेवा कर रहे हैं। उनके कार्यों की प्रशंसा करने के स्थान पर यह ' दुखी - आत्माएँ ' उनकी आलोचनाएँ करती हैं। भगवान ऐसी आत्माओं को शांति प्रदान करें।
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