Thursday, March 31, 2011
Wednesday, March 30, 2011
Obscene photos of Hindu deities on facebook
Maan Kalee : Source of Energy माँ काली प्रतीक
Kali's most common four armed iconographic image shows each hand carrying variously a sword, a trishul (trident), a severed head and a bowl or skull-cup (kapala) catching the blood of the severed head.
Two of these hands (usually the left) are holding a sword and a severed head. The Sword signifies Divine Knowledge and the Human Head signifies human Ego which must be slain by Divine Knowledge in order to attain Moksha. The other two hands (usually the right) are in the abhaya (fearlessness) and varada (blessing) mudras, which means her initiated devotees (or anyone worshiping her with a true heart) will be saved as she will guide them here and in the hereafter
She has a garland consisting of human heads, variously enumerated at 108 (an auspicious number in Hinduism and the number of countable beads on a Japa Mala or rosary for repetition of Mantras) or 51, which represents Varnamala or the Garland of letters of the Sanskrit alphabet, Devanagari. Hindus believe Sanskrit is a language of dynamism, and each of these letters represents a form of energy, or a form of Kali. Therefore she is generally seen as the mother of language, and all mantras
She is often depicted naked which symbolizes her being beyond the covering of Maya since she is pure (nirguna) being-consciousness-bliss and far above prakriti. She is shown as very dark as she is brahman in its supreme unmanifest state. She has no permanent qualities — she will continue to exist even when the universe ends. It is therefore believed that the concepts of color, light, good, bad do not apply to her — she is the pure, un-manifested energy, the Adi-shakti"
Thursday, March 24, 2011
चिड़ियाएँ कहाँ उड़ गईं ??
New Delhi: They were ubiquitous once, chirruping and flapping their wings at the window sill, filling nooks on top of cupboards and fans with their well-cushioned nests, and eagerly pecking at the rice or bread grains you let scatter on the floor. Where have all the little sparrows gone?
For generations, house sparrows have added child-like freshness to households with their presence. Scientists and experts say that severe changes in the urban ecosystem in recent times have had tremendous impact on the population of house sparrows whose numbers are declining constantly.
Scientists believe that the birds may never return unless some concrete steps are taken now.
They used to build their nests below tiled roofs of houses. However, changing architectural designs in urban settlements leaves no such place for them to nest.
Mobile tower radiation and excessive use of chemical fertilizers are aggravating the problem and have been identified as potent sparrow killers.
फलों के रस से बढ़ती है त्वचा की चमक
बाजार में आवश्यक चीजों के भाव में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। त्वचा की हिफाजत अगर कोई करना भी चाहे तो कैसे करे? कॉस्मेटिक के आसमान छूते भाव!
कोई नुस्खा है?
जी हाँ! निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाइए। फल के निचोड़ से बनी सिर्फ एक ही बूँद काफी है आपकी त्वचा रक्षा के लिए। इसमें खर्च भी कम होगा और बाजारू कॉस्मेटिक जैसी मिलावट से भी परे। विभिन्न मौसम में इस्तेमाल के लिए यह एक अत्यंत सफल और वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
सेब : यह त्वचा का तेल कम करता है।
विधि : सेब के एक बड़े टुकड़े की लुगदी बनाकर उसकी पतली तह चेहरे पर 10-15 मिनट तक लगाकर लेट जाएँ। फिर गरम पानी से चेहरा धो लें।
बादाम : रूखी त्वचा के लिए उपयोगी। यह त्वचा को पोषकता एवं कोमलता देती है।
विधि : एक कप ठंडा दूध लें। इसमें 1 औंस पीसा हुआ बादाम डालकर खूब फेंटें। फिर आधा औंस शकर उसमें मिला दें। फिर आहिस्ता-आहिस्ता मुँह, हाथ पर इसका लेप लगाएँ। 20 मिनट बाद ठंडे पानी से धो लें।
टमाटर : दूसरे अन्य फलों की अपेक्षा टमाटर में अधिक विटामिन होते हैं। यह त्वचा को रेशमी, मुलायम बनाने में सहायक है। इसके प्रयोग से त्वचा के दाग-धब्बे धीरे-धीरे कम होकर मिट जाते हैं।
विधि : टमाटर का रस, नीबू का रस, ग्लिसरीन समान मात्रा में लेकर मिलाएँ। हाथ-मुँह धोने के बाद इस मिश्रण से त्वचा की मालिश करें। आधे घंटे बाद गुनगुने पानी से धो लें।
झरबेरी : यह कांतिहीन मुरझाई त्वचा को दिव्यता प्रदान करती है। सूखी त्वचा को मुलायम बनाने के लिए मक्खन मिलाएँ।
विधि : थोड़े से मक्खन में ताजे झरबेरी पीसकर मिलाएँ। पतला लेप चेहरे पर लगाकर आधे घंटे बाद गरम पानी से धो लें। त्वचा एकदम मुलायम हो जाएगी।
तरबूज : यह प्रकृति प्रदत्त नमी देने वाला फल है। इसकी शीतलता, नमी अन्य फलों की अपेक्षा अधिक देर तक रहती है। झुलसी त्वचा के निशानों को मिटाने के लिए यह एक आदर्श फल है।
विधि : फल के सफेद भाग का रस निकालकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएँ। सूखने पर फिर लगाएँ। ऐसा 10-15 मिनट तक करें। चाहें तो इस रस में कॉटन भिगोकर चेहरे पर फैला लें। फिर ठंडे पानी से धो लें।
खीरा : तैलीय त्वचा के तेल को सामान्य रखने तथा कांतिहीन त्वचा में कांति लाने के लिए खीरे का रस प्रकृति की अनुपम देन है। इसका प्रयोग टोनिंग के तौर पर किया जाता है।
शहद : यह त्वचा की झुर्रियाँ मिटाने में बड़ा सहायक है। यह खुश्क त्वचा को मुलायम कर रेशमी व चमकदार बनाता है।
विधि : चेहरे पर शहद की एक पतली तह चढ़ा लें। इसे 15-20 मिनट लगा रहने दें, फिर कॉटनवूल भिगोकर इसे पोंछ लें। तैलीय त्वचा वाले शहद में चार-पाँच बूँद नीबू का रस डालकर उपयोग करें।
नीम : यह त्वचा में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है। इसके प्रयोग से मुँहासे में जादू जैसा लाभ होता है।
विधि : चार-पाँच नीम की पत्तियों को पीसकर मुलतानी मिट्टी में मिलाकर लगाएँ, सूखने पर गरम पानी से धो लें।
केला : यह त्वचा में कसाव लाता है तथा झुर्रियों को मिटाता है।
विधि : पका केला मैश कर चेहरे पर लगाएँ। आधा घंटे बाद ठंडे पानी से धो लें।
आर्ट कंजर्वेटर कैसे बनें
अन्य योग्यताएँ
इस क्षेत्र में जाने के लिए शैक्षिक योग्यता के साथ-साथ अन्य कई व्यक्तिगत गुणों का होना भी बहुत जरूरी है। किसी कला के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण, कला के प्रति सम्मान, लंबे समय तक कार्य करने की क्षमता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं जिम्मेदारी जैसे गुण छात्र में होने बेहद जरूरी हैं।
क्या है कोर्स
पीजी डिप्लोमा, मास्टर प्रोग्राम तथा पीएचडी स्तर पर कार्बनिक रसायन, पेंटिंग्स एवं कला तकनीकी की यात्रा के बारे में विस्तार से बताया जाता है। आजकल कंप्यूटर के चलते कई कलाकृतियों को उसमें भी सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे में कंप्यूटर की जानकारी भी छात्रों को दी जाती है। ये पाठ्यक्रम एक वर्ष, दो वर्ष अथवा 3-5 माह के होते हैं।
विदेश में भी माँग है
वैश्वीकरण के कारण आज विदेशी संस्थानों तथा वहां की कला तथा विरासत से जुड़े सरकारी विभागों में आर्ट कंजर्वेशन से जुड़े लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाते हैं। विदेश में लोग बहुत पहले से कला संरक्षण तथा उसको लंबे समय तक संभाल कर रखने की कोशिशों पर बल देते रहे हैं।
वेतन
इस क्षेत्र में कम प्रोफेशनल होने के कारण कोर्स करते ही नौकरी मिलने की संभावना होती है। शुरुआती तौर पर एक कला संरक्षक को 10 से 12 हजार रुपए प्रतिमाह तथा उसके पश्चात कार्यकुशलता के हिसाब से वेतन बढ़ता है।
प्रमुख संस्थान
* नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्ट्री ऑफ आर्ट कंजर्वेशन जनपथ, नई दिल्ली
* दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ हैरिटेज रिसर्च एरिया, नई दिल्ली।
* अन्नामलाई यूनिवर्सिटी अन्नामलाई नगर, दक्षिणी अरकोट, चेन्नई।
* गाँधी ग्राम ग्रामीण यूनिवर्सिटी, गाँधीग्राम, तमिलनाडु।
इंस्टिट्यूट्स फॉर एग्जीबिशन डिजाइनिंग
इसके अतिरिक्त इंटीरियर डिजाइनिंग या इवेंट मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम भी किए जा सकते हैं। इंटीरियर डिजाइनिंग तथा इवेंट मैनेजमेंट के पाठ्यक्रमों में भी एग्जिबिशन डिजाइनिंग सिखाई जाती है। इन कोर्सों को करने के बाद आप अपने करियर की शुरुआत एग्जिबिशन डिजाइनर के रूप में कर सकते हैं।
कहाँ से करें कोर्स
1. भारतीय जनसंचार संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर, नई दिल्ली।
2. जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली।
3. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन (निड), मेन केम्पस, पालडी, अहमदाबाद।
4. एपीजे इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन, 54, महरौली, नई दिल्ली ।
5. मुद्रा इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, अहमदाबाद।
6. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन इंडिया, हैबिटेट सेंटर, लोधी रोड, नई दिल्ली।
सुषमा स्वराज और मनमोहन सिंह का मुकाबला : शे'र
सुषमा ने नियम-193 के तहत हुई चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री के नेतृत्व और कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए शेर पढ़ा- ‘तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता के कारवाँ क्यों लुटा, मुझे रहजनों (लुटेरों) से गिला नहीं, तेरी रहबरी (नेतृत्व) का सवाल है'।
इस शेर पर सुषमा के सामने बैठे सिंह मुस्कुरा दिए। चर्चा के जवाब के दौरान सिंह ने सुषमा से मुखातिब होते हुए कहा कि उनके शेर के जवाब में वे भी एक शेर कहना चाहते हैं, इस पर सुषमा ने हँसते हुए - ‘इरशाद'।
सिंह ने इकबाल का मशहूर शेर पढ़ा- ‘माना कि तेरे दीद का काबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख'। सिंह के इस शेर को सत्ता पक्ष के सदस्यों की ओर से मेजों की थपथपाहट के साथ वाहवाही मिली, जबकि विपक्षी सदस्य सन्नाटे में नजर आए।
Resume : Don't write these words /Karen Burns
You want your resume to stand out. The best way to sell yourself is to show, don’t tell. Explain your accomplishments rather than spouting them off in trite ways. So check your resume for these boilerplate words and phrases. If you find them, replace them–or at the very least, elaborate upon them — with real-life, specific examples.
So when making your resume, keep the following words out of the scene.
1. Team player
2. Detailed-oriented
3. Proven track record of success
4. Experienced
5. Excellent communication skills
6. Leadership skills
7. Go-to person
8. Managed cross-functional teams
9. Exceptional organizational skills
10. Self-starter
11. Results-oriented professional
12. Bottom-line orientated
13. Works well with customers
14. Strong negotiation skills
15. Goal-oriented
16. People-person
17. Dynamic
18. Innovative
19. Proven ability
20. Top-flight
21. Motivated
22. Bottom-line focused
23. Responsible for
24. Assisted with
25. Skilled problem solver
26. Accustomed to fast-paced environments
27. Strong work ethic
28. Works well with all levels of staff
29. Met (or exceeded) expectations
30. Savvy business professional
31. Strong presentation skills
32. Looking for a challenging opportunity
33. Cutting-edge
34. Multi-tasker
35. Proactive
36. Seasoned professional
37. Perfectionist
38. Highly skilled
39. Functioned as
40. Duties included
41. Actions encompassed
42. Best-in-class
43. Strategic thinker
44. Trustworthy
45. Flexible
46. Works well under pressure
47. Quick learner
48. Partnered with others
49. Results-focused
50. Out-of-the-box thinker
Fake resumes...jail is waiting
Remember how effortlessly the suave Leonardo Di Caprio as Frank Abignale Jr. slipped in and out of his various roles as doctor, lawyer, a Harvard graduate or a pilot in Catch Me If you Can? None of his employers ever suspected he was a fake when they hired him. That's because as Frank Abignale Jr himself said very rightly: "… people only know what you tell them, Carl."
There are several such Franks at large these days in the country's corporate sector. Whether to keep pace with the peers or beat them at the game, or just to make a few quick bucks, youngsters are resorting to unfair means and "doing up" their resumes. From educational qualifications to projects worked on, everything is a lie.
Cops recently arrested a fake IndiGo airlines pilot, who was the wife of an IPS officer. An India Today report says :
"Gulati allegedly produced the forged marksheets of DGCA Airline Transport Pilot Licence (ATPL) test to get the commercial pilot licence."
Ever since, Air India has derostered another 'fake pilot' and according to a latest report in NDTV India may have 4000 fake pilots! Surely, 'Catch me if you can' seems to have inspired a whole new generation, suddenly!
According to a TOI report today, the DGCA has now decided to bring over 10,000 pilots under the scanner.
Fake pilots may be a recent revelation, but faking resumes isn't anything new. A few years ago, around 2007-2008, the IT industry was swamped with such resumes. At least 20 employees were found guilty of submitting incorrect documents in TCS, while Infosys sacked as many as 100 employees for discrepancies in their resumes and Wipro and Satyam have also hunted down those who faked their CVs.
In fact, in 2009, a survey showed that even the banking industry was flooded with fake resumes.
These days, employers are even more merciless when they find discrepancies in employees' CVs. They just terminate their services without any warning.
But it isn't surprising considering there are several online 'how to's to help fake a resume and get your dream job.
The scam assumed such proportions that it spawned a whole new industry of background verifiers as a result.
Companies have now become very cautious and employ specialists to conduct background checks on shortlisted recruits. Ethical compliance and honesty are important aspects of any multinational company.
People might know what you tell them initially, but eventually the culprit does leave behind some 'elementary' clue that could strip him of his dream run.
Wednesday, March 23, 2011
23 March 2011 Tribute to Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru
22 मार्च,1931
साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता. लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता.
मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है - इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता.
आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं. अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी.
हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता.
इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
आपका साथी,
भगत सिंह
Tuesday, March 22, 2011
अपनी ठकुरानी श्री राधिका रानी
मैं शिव-रूपा
मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी.
व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ना मैं मरण भीत भय भीता, ना मैं जनम लेत ना जीता.
मैं पितु, मातु, गुरु, ना मीता. ना मैं जाति-भेद कहूँ कीता.
ना मैं मित्र बन्धु अपि रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
Monday, March 21, 2011
धन्यवाद की आदत डालें ! * अशोक लव
गहनता से चिंतन करें तो मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं.
इस दृष्टि से मनुष्य को हर पल दूसरों को धन्यवाद देना चाहिए.
बदलते मूल्यों और संस्कारों के कारण व्यक्ति दूसरों के किए उपकारों को भूलकर नितांत स्वार्थी होता जा रहा है. माता-पिता तक को नहीं पूछता. उसे केवल अपने स्वार्थ दिखते हैं . उसके स्वार्थ पूरे नहीं हुए तो झट रूप बदल लेता है. यदि कोई व्यक्ति किसी के सौ में से निन्यानवे कार्य कर देता है पर एक नहीं करता तो वह बौखला जाता है. अनर्गल प्रलाप करने लगता है. संबंधों को तार-तार कर देता है. वे उन निन्यानवे कार्यों को भुला देता है.
हमारी वैदिक और पौराणिक परम्परा रही है कि हम देव ऋण उतारने के लिए देवताओं को पूजते हैं. सूर्य हमें प्रकाश देता है तो उन्हें जल अर्पित करने का प्रावधान किया गया. इसी तरह चन्द्र,मंगल,बुध, बृहस्पति,शुक्र और शनि ग्रहों क़ी पूजा क़ी जाती है. देवी-देवताओं क़ी पूजा क़ी जाती है. मातृ ऋण, गुरु ऋण आदि ऋण जन्म के साथ हमारे साथ जुड़ जाते हैं. हमारे पूर्वजों ने इसके विधि-विधान निर्धारित किए थे. ये धन्यवाद के ही रूप थे.
' धन्यवाद ' देना मनुष्य क़ी विनम्रता का प्रतीक है. इससे उसके संस्कारों का पता चलता है. यह शिष्टाचार का अनिवार्य अंग भी है. पश्चिमी देशों में लोग किए गए कार्य के लिए तत्काल धन्यवाद देते हैं. जीवन में अच्छे कार्यों क़ी आदत कभी भी आरम्भ क़ी जा सकती है. ' धन्यवाद' देने क़ी आदत आज और अभी से डाल लेनी चाहिए.
योगी पुरुष
योगी पुरुष को भोजन करने से पूर्व मौन धारण करके एक बार आचमन करके "प्राणाय स्वाहा" कह कर प्रथम ग्रास ग्रहण करे, फिर क्रमश: "अपानाय स्वाहा" कह... कर दूसरा ग्रास, " समानाय स्वाहा" कह कर तीसरा ग्रास "उदानाय स्वाहा" कहकर चौथा ग्रास, एवं वुआनाय कहकर पांचवां ग्रास भोजन करने के बाद शेष भोजन को इच्छानुसार भोजन करके तृप्त होवे! तत्पश्चात जल पीकर आचमन करके हृदय को स्पर्श कराना चाहिए!
योगी पुरुष को ज्ञान की विविधता के चक्कर में न पड़कर सारभूत एवं कार्य की सिद्धि प्रदान करने वाले ज्ञान की ही उपासना करनी चाहिए! यह भी जानना है वह भी जानना है अर्थात अनेकों प्रकार के ज्ञान की प्रापी के चक्कर में पड़ने से हजारों वर्षों तक भटकना पड़ता है और ज्ञान की प्राप्ति कुछ भी नहीं होती! संग का त्याग करने वाला, अक्रोधी, अल्पाहारी,जितेन्द्रिय योगी को बुद्धि योग से दशेंद्रियों के द्वारों को बंद करके मन को ध्यान में स्थिर करना चाहिए! योगी पुरुषों को निर्जन व् एकांत स्थान, गुफा तथा वन में जाकर विधि पूर्वक ध्यान करना चाहिय्र! वाकदंड, कर्मदंड एवं मनोदंड को वश में रखने वाले यति को ही त्रिदंडी कहते हैं! इस सत-असत गुण-अवगुण रुपी इस संसार को जो योगी आत्ममय मानता है उसका न कोई अपना है न कोई पराया ही! जो विशुद्ध मन से सोने को भी मिटटी तुली मानता है तथा सब प्राणियों को एक समान भाव से देखता है तथा है तथा समस्त प्रानोयों में समाहित होकर सर्वत्र ही एक मात्र, सर्वाधार शाश्वत एवं अव्यय ब्रह्म को सर्वत्र विद्यमान देखता है! उस योगी का पुनर्जन्म नहीं होता! संसार में वेदों से भी श्रेष्ठ यज्ञा, यज्ञों से श्रेष्ट जप, जप से श्रेष्ठ ज्ञानमार्ग एवं ज्ञान से विषयासक्ति एवं रागविहीन होकर ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि ध्यान से शाश्वत ब्रह्म की प्राप्ति होती है! इसलिये सावधानी पूर्वक ब्रह्मपरायण, प्रमाद रहित, एकांतवासी और जितेन्द्रिय होकर ध्यान की साधना करता है वही आत्मा में आत्मा के संयोग से मोक्ष की प्राप्ति करता है! यही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन है! जो योगी इस मार्ग पर चल कर सफलता प्राप्त कर लेता है, उसके लिये संसार में कुछ भी शेष नहीं रह जाता!
No expousre of underwear or body parts
The bill was introduced by Rep. Hazelle Rogers (D-Lauderhill, Florida) and passed unanimously by the subcommittee, reports The St. Petersburg Times.
"This pro-family, pro-education, pro-jobs bill provides each school district ... adopt a student dress code of conduct, a policy that explains to each student their responsibility," Rep. Rogers said. "This would make for a better school district and more productive students."
The bill doesn't mention sagging pants, but its clear by the verbiage, which prohibits students from wearing clothing that "exposes the underwear or body parts in an indecent or vulgar manner."
Although no one has positively identified where the trend of sagging pants started, the new legislation claims that the practice of sagging pants originated in the prison system, "where belts are not issued because they may be used to commit suicide or used as weapons."
Students face a variety of disciplinary actions if their style of dress is deemed "vulgar" to school officials.
They can be issued verbal warnings, banishment from extracurricular activities and even in-school suspensions.
The local branch of the NAACP in Florida has condemned the bill, claiming that black youth will be targeted.
News March 2011
मोहयाल सभा होश्यारपुर :भवन उद्घाटन 27 मार्च
*विजंत बाली ( सेक्रेट्री )
महामृत्युंजय मंत्र का असर
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
Thursday, March 17, 2011
Radha daughter of Vrishbhanu
It is said that at the time of Radha’s birth, Devarshi Narad himself went and met Vrishbhanu and informed him, “This girl’s beauty and nature is divine. All the houses, wherever her footprints are, Lord Narayan with all other deities will reside. Nurture this girl thinking her to be a Goddess.” According to Naradji’s advice, Vrishbhanu nurtured Radha with great love and care. Nandbaba who lived in the nearby village was friends with Vrishbanu. Once during the festival of Holi; Vrishbanu went to Gokul to meet Nandrai. At Nandrai and Yashoda’s house Krishna (who was growing up as their son) met Radha. Their union was divine, phenomenal and incessant. This meeting was Radha and Krishna’s first meeting which became eternal.
Painting : Deepankar Mazumdar
Saturday, March 12, 2011
Saturday, March 5, 2011
Jan Gan Man : Was written For Whom??
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Tuesday, March 1, 2011
कथा महाशिवरात्रि और पूजा विधि
एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई।
एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।'
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।'
शिकारी हँसा और बोला, 'सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।'
उत्तर में मृगी ने फिर कहा, 'जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।'
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,' हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।'
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।'
उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।
देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।
महाशिवरात्रि पूजाविधि
शिवपुराणके अनुसार व्रती पुरुषको महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल उठकर स्न्नान-संध्या आदि कर्मसे निवृत्त होनेपर मस्तकपर भस्मका त्रिपुण्ड्र तिलक और गलेमें रुद्राक्षमाला धारण कर शिवालयमें जाकर शिवलिंगका विधिपूर्वक पूजन एवं शिवको नमस्कार करना चाहिये। तत्पश्चात् उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रतका इस प्रकार संकल्प करना चाहिये-
शिवरात्रिव्रतं ह्यतत् करिष्येऽहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान तथा `ओम हीं ईशानाय नम:’ का जाप करें। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके `ओम हीं अधोराय नम:’ का जाप करें। तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र `ओम हीं वामदेवाय नम:’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं `ओम हीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जाप करें।
महाशिवरात्रि मंत्र एवं समर्पण
सम्पूर्ण – महाशिवरात्रि पूजा विधि के दौरान ‘ओम नम: शिवाय’ एवं ‘शिवाय नम:’ मंत्र का जाप करना चाहिए। ध्यान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पय: स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, गंधोदक स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, उवपसत्र, बिल्व पत्र, नाना परिमल दव्य, धूप दीप नैवेद्य करोद्वर्तन (चंदन का लेप) ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, दक्षिणा उपर्युक्त उपचार कर ’समर्पयामि’ कहकर पूजा संपन्न करें। कपूर आदि से आरती पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, शाष्टांग प्रणाम कर महाशिवरात्रि पूजन कर्म शिवार्पण करें।
महाशिवरात्रि व्रत प्राप्त काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से जागरण, पूजा और उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।