ये समस्या किसी भी मौसम में हो सकती है। बच्चे भी धूल-मिट्टी में खेलने के कारण इस बीमारी की चपेट में आसानी से आ जाते हैं। ये संक्रामक बीमारी नहीं है। इसे आसानी से रोका जा सकता है। इसके लक्षण अलग-अलग लोगों में अलग-अलग तरीके से उत्पन्न होते हैं।
इसमें त्वचा में खुजलाने के कारण लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। यह अक्सर माथे, कोहनी, घुटने और गर्दन पर उत्पन्न होती है। कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि यह बीमारी वंशानुगत होती है। आज हम इसके बचाव और उपचार के बारे में आपको बताएंगे:
कैसे करें बचाव:
इसके लिए अत्यधिक पसीने और अत्यधिक ऊष्मा से बचें। बहुत ज्यादा सोडे वाले साबुन का प्रयोग करने की बजाय सौम्य साबुन का इस्तेमाल करें। सर्दियों में एसी और रूम हीटर से दूर से गर्मी लें। नहाने में त्चचा को ज्यादा न रगड़ें। बीमारी हो जाने पर सूती कपड़े पहनें।
उपचार:
बच्चों में ये बीमारी अक्सर हो जाती है। इसलिए उन्हें ज्यादा गरम पानी से नहलाने की बजाय हल्के गुनगुने पानी से नहलाएं। नहाने के पानी में कुछ बूंदें तेल की डाल लें। छोटे बच्चों की तेल से प्रतिदिन मालिश करें। जिससे उनकी त्वचा में नमी बनी रहे। घर से बाहर माश्चराइजर लगाकर ही निकलें। त्वचा अधिक रूखी होने पर दिन में तीन से चार बार माश्चराइजर लगाएं। गंभीर समस्या हो जाने पर त्वचा विशेषज्ञ से सलाह लें।
इस बीमारी का इलाज पराबैंगनी किरण तकनीक से भी होता है। एलर्जी करने वाले खाद्य पदार्थो को खाने और धूल मिट्टी वाले वातावरण के संपर्क में आने से बचें।
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