अदालत ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि यह दो बच्चों की ही समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक और मानवीय समस्या है। उपलब्ध रिकार्ड के आधार पर ही इस मामले की सुनवाई होगी।
कोर्ट ने बच्चों को जर्मनी ले जाने के लिए पासपोर्ट की मांग कर रहे पिता जान ब्लाज से कहा कि वह बुधवार, 16 दिसंबर तक हलफनामा दाखिल कर बताएं कि क्या बच्चों को पासपोर्ट जारी करने से जर्मन अथारिटी उन्हें नागरिकता दे देगी। उनसे यह भी बताने को कहा कि क्या वह गोद लेने की प्रक्रिया अपनाने को तैयार हैं। मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को होगी।
इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश सालीसीटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि याचिकाकर्ता भारतीय पासपोर्ट इस्तेमाल करके सिर्फ बच्चों को देश के बाहर ले जाना चाहता है। वह बच्चों की भारतीय नागरिकता में कतई रुचि नहीं रखता। यह कैसे हो सकता है कि एक विदेशी नागरिक भारत आकर सरोगेसी का करार करे और बच्चों के जन्म के बाद उन्हें विदेश ले जाए। आखिर ये लोग बच्चे गोद लेने की प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाते। उसमें कम से कम बच्चे के हित तो सुरक्षित रहते हैं। क्या गारंटी है कि सरोगेसी के जरिये जन्मे बच्चों से विदेश में मजदूरी नहीं कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि समस्या भारतीय दंपतियों के साथ नहीं है, विदेशी नागरिकों के साथ है क्योंकि उनके बच्चों की नागरिकता का मुद्दा आता है। बच्चों को स्टेटलेस यानी नागरिकता विहीन कैसे छोड़ा जा सकता है।
सुब्रमण्यम ने कहा कि उन्हें इन दो बच्चों को यात्रा दस्तावेज जारी करने पर कोई आपत्तिनहीं है, बल्कि इसके लिए उन्होंने मंत्रालय से बात भी की है। पर आगे की कार्रवाई के लिए नियम तय होना ही चाहिए। वैसे भी इस मामले में याचिकाकर्ता को मालूम था कि जर्मनी का स्थानीय कानून सरोगेसी को मान्यता नहीं देता है, फिर भी उसने सरोगेसी करार किया।
जान के वकील का कहना था कि सिर्फ बच्चों को जर्मनी ले जाने के लिए दस्तावेज जारी कर दिये जाएं, ताकि वहां आवेदन किया जा सके।
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