कितनी तरह के होते हैं खाने के तेल खाने के तेलों को दो कैटिगरी में बांटा जा सकता है।
1. एनिमल सोर्स (सैचरेटेड फैट): इसमें घी, मक्खन, क्रीम व नारियल तेल प्रमुख हैं। इन्हें सैचरेटेड फैट भी कहा जाता है। ये भारी होते हैं और आसानी से पचते नहीं हैं। लेकिन जमकर वर्कआउट या शारीरिक मेहनत की जाए तो बॉडी में अब्जॉर्ब हो जाते हैं। ये बैड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं लेकिन गुड कॉलेस्ट्रॉल को कुछ नहीं करते। वैसे, सैचरेटेड होने के बावजूद कोकोनट ऑइल कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ाता। भारी होने की वजह से इन्हें कम खाना चाहिए। दिनभर में हमारे द्वारा ली गईं कैलरीज का 10 फीसदी से भी कम सैचरेटेड फैट्स से आना चाहिए।
2. प्लांट सोर्स: प्लांट सोर्स से दो तरह के फैट मिलते हैं : रिफाइंड और वनस्पति घी।
रिफाइंड ऑइल: किसी भी तेल को जब इस तरह प्रोसेस किया जाए कि उसका मूल स्वरूप खत्म हो जाए और देखने-सूंघने से मालूम नहीं चले कि कौन-सा तेल है तो उसे रिफाइंड ऑइल कहते हैं। रिफाइंड ऑइल भी दो तरह के होते हैं : मोनो-अनसैचरेटेड (मूफा) और पॉली-अनसैचरेटेड (पूफा)।
मूफा : ऑलिव, राइस ब्रैन, सरसों, मूंगफली आदि।
पूफा : सफोला या सैफ्लार, कनोला, सनफ्लार आदि।
कुछ तेल ऐसे भी हैं, जो फैक्ट्री में नहीं बनते। कच्ची घानी का तेल (सरसों का तेल) इसी कैटिगरी में आता है। जिन ऑइल में मूफा, पूफा के अलावा ओमेगा-3 ज्यादा मात्रा में होता है, वे गुड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं और बैड को कम करते हैं।
वनस्पति घी (ट्रांस सैचरेटेड फैट) : डालडा, रथ, पनघट आदि को इस कैटिगरी में रखा जाता है। इन्हें ट्रांस सैचरेटेड फैट भी कहा जाता है। खाने के तेल में हाइड्रोजन मिलाकर वनस्पति घी तैयार किया जाता है। ऐसा ऑइल की लाइफ और स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। लेकिन हाइड्रोजिनेशन की प्रक्रिया में इनमें भारी मात्रा में ट्रांस फैट आ जाते हैं। ये शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। ट्रांस फैट्स बैड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं और गुड कॉलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। ये शरीर में जलन भी बढ़ाते हैं। सैचरेटेड और ट्रांस सैचरेटेड फैट सर्दियों में जम जाते हैं। वैसे, देसी घी और बटर में भी 5 फीसदी तक ट्रांस-फैट हो सकते हैं। टोटल कैलरीज का एक फीसदी से भी कम ट्रांस-फैट्स से लेना चाहिए।
किसमें ज्यादा : जिन चीजों में कुरकुरापन लाना होता है, उनमें वनस्पति तेलों का इस्तेमाल किया जाता है। पैक्ड फ्राइड फूड और बेकरी प्रॉडक्ट्स में इन्हें यूज किया जाता है। जैसे कि नमकपारे, शक्करपारे, कुकीज, मफिन, फैन आदि। साथ ही, रेडी टु यूज सूप, वेजिटेबल और ग्रेवी आदि में भी ट्रांस फैट्स होते हैं। बेकरी प्रॉडक्ट्स में मक्खन, डालडा, मारग्रीन की जगह पाम ऑइल डाल सकते हैं क्योंकि इसमें सैचरेटेड व अनसैचरेटेड फैट्स का अनुपात सही है।
ज्यादा नुकसान किससे ज्यादा मात्रा में खाने पर खाने के सभी तेल नुकसानदेह होते हैं लेकिन सबसे नुकसानदेह हैं ट्रांस फैट्स या वनस्पति घी। इनमें केमिकल होते हैं, जोकि दिल की नलियों को ब्लॉक कर देते हैं और शरीर में जलन बढ़ाते हैं। साथ ही, ये बैड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं और गुड कॉलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। इसलिए जो खाएं, फ्रेश खाएं। तले-भुने से बचें।
कौन-सा तेल सबसे अच्छा किसी भी एक तेल को अच्छा या संपूर्ण नहीं माना जा सकता। अच्छा तेल वह है, जिसमें मूफा और पूफा बैलेंस मात्रा में हो। साथ ही, फैटी एसिड्स ओमेगा 3, 6 व 9 भी अच्छी मात्रा में होने चाहिए। जिस तेल में ओमेगा-3 जितना ज्यादा होगा, वह दिल के लिए उतना ही अच्छा होगा। यह सरसों, मूंगफली, ऑलिव (जैतून) ऑइल में ज्यादा होता है।
किसी एक चीज के आधार पर किसी तेल को अच्छा नहीं माना जा सकता। मसलन, ऑलिव में मूफा व पूफा कम होते हैं लेकिन ओमेगा 3 व 6 अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। सैफ्लावर और सनफ्लार को दिल के लिए सबसे अच्छा माना जाता रहा है, क्योंकि इनमें पूफा ज्यादा है लेकिन हालिया रिसर्च में पता चला है कि पूफा का हिस्सा ओमेगा-3 ही दिल की सेहत का हाल तय करता है। सरसों के तेल में ज्यादा ओमेगा-3 पाया जाता है। इसी तरह, सैचरेटेड फैट ज्यादा होने की वजह से नारियल तेल को अच्छा नहीं माना जाता, जबकि यह कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ाता। नॉर्थ इलाकों में रहनेवालों को इसे यूज नहीं करना चाहिए लेकिन तटीय इलाकों में रहनेवाले इसे खा सकते हैं क्योंकि वे आमतौर पर घी-मक्खन कम खाते हैं। मोटे तौर पर ऑलिव, कनोला, राइस ब्रैन, सोयाबीन और सरसों के तेल को अच्छा मान सकते हैं। कनोला का तेल सरसों जैसा ही लेकिन उससे बेहतर है क्योंकि इसमें यूरेसिक एसिड नहीं बनता।
वैसे, सबसे अच्छा है कि एक-तिहाई सैचरेटेड (देसी घी), एक-तिहाई ओमेगा-3 (सरसों का तेल) और एक-तिहाई ओमेगा-6 (सनफ्लार) ले लें। तीनों को रोजाना एक-एक चम्मच खा सकते हैं। आजकल मार्केट में ब्लैंड ऑइल (मिले-जुले तेल) भी मिलते हैं, जैसे कि डॉक्टर्स चॉइस ब्रैंड का राइस और तिल का ब्लंड ऑइल। इस तरह के तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ट्रांस फैट को खाने से निकाल देना ही बेहतर है।
तेल खरीदते देखें किसी भी तेल को दुकान से उठा लेने के बजाय देखना चाहिए कि हम कौन-सा तेल खरीद रहे हैं। अच्छे तेल में ओमेगा 3, 6 और 9 के साथ-साथ मूफा व पूफा भी होने चाहिए। तेल में ओमेगा-6 और 3 के बीच 5-10 : 1 का रेश्यो होना चाहिए। मसलन अगर 1 ग्राम ओमेगा-3 ले रहे हैं तो 5-10 ग्राम ओमेगा-6 लेना चाहिए। ओमेगा-थ्री के सोर्स काफी कम हैं, मसलन फिश, राजमा, अलसी व अखरोट आदि, जबकि ओमेगा-6 हर अनाज, हर दाल और हर तेल में होता है। तेल खरीदते हुए देखें कि ओमेगा-3 ऊपर लिखा हो और ओमेगा-6 नीचे यानी ओमेगा-3 ज्यादा और ओमेगा-6 कम। साथ ही, ट्रांस फैट जीरो होना चाहिए। अगर किसी तेल में ओमेगा-6 (सनफ्लार और कॉर्न) बहुत ज्यादा हो, तो उसे भी अच्छा नहीं माना जाता।
कितना तेल खाएं और कैसे तेल खाते वक्त क्वांटिटी और क्वॉलिटी दोनों का ख्याल रखें। रोजाना तीन चम्मच तेल खा सकते हैं, यानी महीने में आधा लीटर। घी-तेल सबकुछ मिलाकर इससे ज्यादा नहीं खाना चाहिए। छौंक, अचार से लेकर किसी भी रूप में खाया जानेवाला तेल इसमें शामिल होना चाहिए। सब्जी में ऊपर से डालने या रोटी पर भी घी लगा सकते हैं, पर उसी तय मात्रा के अंदर। तेल-घी को ज्यादा नहीं पकाना चाहिए। इससे उसमें रिऐक्शन होते हैं।
बदल-बदल कर खाएं लगातार एक ही तेल न खाएं। हर ऑइल में कुछ-न-कुछ जरूरी फैटी एसिड्स होते हैं। कोई तेल पूरा नहीं है, इसीलिए ऑइल का रोटेशन करना चाहिए। एक बोतल खत्म हो जाने पर दूसरा तेल ले लें या दो तेलों को एक साथ इस्तेमाल कर सकते हैं। मसलन, एक सब्जी सरसों के तेल में बनाएं तो दूसरी ऑलिव ऑयल में। फ्राई करने के लिए हाई या मीडियम स्मोकिंग पॉइंट (जिस तापमान पर तेल में धुआं उठता है) वाले तेल सरसों, मूंगफली, सफोला, सनफ्लावर आदि यूज कर सकते हैं। देसी घी में फ्राई करने से बचना चाहिए।
तेल कब तक खराब नहीं होता अगर साफ-सुथरे ढंग से रखा जाए तो घी-तेल जल्दी खराब नहीं होते। लेकिन गर्म जगह पर रखने से ये खराब हो सकते हैं। मक्खन जल्दी ही स्वाद में खराब हो जाता है। घी-तेल को फ्रिज में भी रख सकते हैं और बाहर भी। घी-तेल को प्लास्टिक के बजाय कांच की बोतल में रखना बेहतर है। फूड ग्रेन प्लास्टिक में भी रख सकते हैं। ज्यादा तापमान में प्लास्टिक से तेल में रिऐक्शन हो सकते हैं। तेल की बोतल पर लिखा होता है कि कब तक इस्तेमाल करना सही है। उसके बाद इसे यूज न करें। सरसों का तेल कभी भी खुला नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि उसमें मिलावट की आशंका हो सकती है। अच्छे ब्रैंड का पैक्ड तेल ही खरीदें।
बार-बार इस्तेमाल न करें एक बार तलने के लिए इस्तेमाल किए गए तेल को दोबारा बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। करना ही है तो उससे सब्जी में छौंक सकते हैं। लेकिन फ्राई करने के लिए तो बिल्कुल फिर से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। रेस्तरां और ढाबे आदि में एक ही तेल को बार-बार इस्तेमाल किया जाता है, इसीलिए जो लोग बाहर खाना खाते हैं, उनको दिल की बीमारी ज्यादा होती है। बेहतर है कि तलने के लिए छोटी और गहरी कड़ाही का इस्तेमाल करें। इससे कम तेल में काम चल जाएगा और तेल कम बचेगा।
ज्यादा तेल खाने के नुकसान ज्यादा तेल खाने से मोटापा बढ़ने के साथ-साथ हाई कॉलेस्ट्रॉल, हाई बीपी, डायबीटीज, एलर्जी, अस्थमा, हार्ट अटैक जैसी बीमारियां की आशंका बढ़ती है। एक फीसदी कॉलेस्ट्रॉल बढ़ने पर दिल के दौरे की आशंका 2 फीसदी बढ़ जाती है। 1 चम्मच तेल में 50 कैलरी होती हैं, यानी अगर एक परांठे में दो चम्मच तेल-घी लगता है तो सीधे-सीधे 100 कैलरी मिल जाती हैं। आटे या भरांवन की कैलरी अलग। साथ में, ज्यादातर लोग मक्खन और अचार भी खाते हैं। इस तरह, काफी सारा फैट शरीर में चला जाता है, जोकि सही नहीं है।
कम तेल खाने के नुकसान कुछ लोग जीरो फैट डाइट लेते हैं। उनका लॉजिक होता है कि तमाम खाने मसलन, गेहूं, चावल, सरसों, बादाम, अखरोट आदि में फैट होता है, इसलिए ऊपर से घी-तेल खाने की जरूरत नहीं होती। लेकिन एक्सपर्ट्स मानते हैं कि थोड़ा-सा तेल जरूर खाना चाहिए। ऐसा न करने से जरूरी फैटी एसिड्स की कमी हो सकती है। फैट की कमी से स्किन में रूखापन, होंठ फटना, बाल झड़ना, प्रतिरोधक क्षमता में कमी, जोड़ों में दर्द हो सकता है। नर्वस सिस्टम और कार्डिवस्कुलर सिस्टम पर बुरा असर पड़ सकता है।
खास बात - - महीने में प्रति व्यक्ति आधा बोतल तेल से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, जबकि हमारे यहां 10 लीटर तेल कन्ज़यूम होता है, जोकि बहुत ज्यादा है।
- बेकरी प्रॉडक्ट्स में मक्खन, डालडा, मारग्रीन की जगह पाम ऑइल डाल सकते हैं।
- भारत खाने के तेल का तीसरा सबसे बड़ा कन्जयूमर है और सबसे ज्यादा इंपोर्ट करता है।