जाऊँ कहाँ तजि चरन तिहारे ।
काको नाम पतित-पावन जग, केहि अति दीन पियारे॥
कौने देव बराइ बिरद-हित, हठि हठि अधम अधारे।
खग, मृग, ब्याध, पषान, बिटप जड, जवन कवन सुर तारे॥
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब, माया-बिबस विचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे॥
-- विनय पत्रिका से
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