आयोग की ओर से दाखिल याचिका में हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा गया है कि समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाली धारा 377 में दी गई ढिलाई और एकांत में दो बालिगों के बीच सहमति से बनाये गए समलैंगिक संबंधों को कानूनी ठहराने से बढ़ते बच्चों के मन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इस पहलू पर हाईकोर्ट ने विचार नहीं किया है। इससे सामाजिक वर्जनाएं टूटेंगी और भारतीय संस्कृति प्रभावित होगी। यही नहीं, हाईकोर्ट ने समलैंगिक जोड़े की शादी या उनके बच्चा गोद लेने के सामाजिक परिणामों पर भी विचार नहीं किया है। उस बच्चे के सामने पहचान का संकट खड़ा हो सकता है।आयोग ने कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने विभिन्न देशों में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दिए जाने को फैसले का आधार बनाया है, लेकिन बहुत कम देश ऐसे हैं जहां इसे कानूनी मान्यता दी गई है। वैसे भी दूसरे देश की संस्कृति उधार लेते समय अपने देश के सांस्कृतिक परिवेश और मूल्यों को समझा जाना चाहिए।आयोग का कहना है कि और भी बहुत से काम हैं जो सम्मति से होते हैं, लेकिन कानून की नजर में वे अपराध हैं, जैसे- दहेज का लेनदेन आदि। आयोग ने फैसले के विरोध के वैज्ञानिक आधार भी दिए हैं और कहा है कि समलैंगिकता का व्यक्ति के व्यवहार पर आगे चल कर बुरा प्रभाव पड़ता है। अध्ययनों से पता चला है कि इसका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
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