सावन का जब लगा महीना
बदल नभ में डोले
सुखी बेले बौराई वन
मोर पपीहा बोले
... पर्वत पर पानी की कलकल
छलक-छलक इठलाती
धीरे धीरे सर-सर की ध्वनि
मैदानों में आती
पक्षी फर-फर करते जल में
चोंच - डुबोनी खेले
तोते चुप - चुप आँखे मारे
मैना हंस - हंस झेले
दूर धुले तरु - कुंजो की
छोटी से कोयल बोली
जिसको सुनकर लगा चौकड़ी
भागी है मृग - टोली
हुक - हुक कर बन्दर कूड़े
कचनारो की डाली
जिनके निचे पूंछ हिला गौ
दल ने ठौर बना ली
चली ग्वाल गाती
हरियाली के गाने
लिए फावड़ा कुषक खेत की
आये डाल बनाने
इन्द्रपुरी क्या उतरी वन में
पटरानी आँगन में
ताल तलैयों की तरुनाई
झींगुर तेरे मन में
बदल नभ में डोले
सुखी बेले बौराई वन
मोर पपीहा बोले
... पर्वत पर पानी की कलकल
छलक-छलक इठलाती
धीरे धीरे सर-सर की ध्वनि
मैदानों में आती
पक्षी फर-फर करते जल में
चोंच - डुबोनी खेले
तोते चुप - चुप आँखे मारे
मैना हंस - हंस झेले
दूर धुले तरु - कुंजो की
छोटी से कोयल बोली
जिसको सुनकर लगा चौकड़ी
भागी है मृग - टोली
हुक - हुक कर बन्दर कूड़े
कचनारो की डाली
जिनके निचे पूंछ हिला गौ
दल ने ठौर बना ली
चली ग्वाल गाती
हरियाली के गाने
लिए फावड़ा कुषक खेत की
आये डाल बनाने
इन्द्रपुरी क्या उतरी वन में
पटरानी आँगन में
ताल तलैयों की तरुनाई
झींगुर तेरे मन में
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