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Thursday, January 7, 2010

कुम्भ का महत्त्व और हरिद्वार में स्नान

इस महापर्व में देश के कोने-कोने से असंख्य धर्मपरायण श्रद्धालुगण, संत-महात्मा और धर्मगुरु भाग लेते है। कुंभ के आयोजन की पृष्ठभूमि में एक धार्मिक कथा है, जिसमें देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र-मंथन करके अमृत प्राप्त करने का प्रसंग आता है।

[समुद्र-मंथन:] स्कंदपुराण के अनुसार,

अमृत-प्राप्ति के उद्देश्य से देवताओं और दैत्यों ने मिलकर मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को रस्सी बनाकर समुद्र-मंथन किया। इससे चौदह महारत्न निकले। धन्वंतरि अमृत से भरे कुंभ लेकर समुद्र से निकले। देवताओं के संकेत पर देवराज इंद्र के पुत्र जयंत उस अमृतकुंभ को लेकर भागे। दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेश पर दैत्यों ने उस कुंभ को छीनने के लिए जयंत का पीछा किया। इसे देखकर अमृतकलश की रक्षा के लिए देवगण भी दौड़ पड़े। अमृत की प्राप्ति के लिए देवों और दैत्यों में बारह दिव्य दिन (मनुष्यों के 12 वर्ष) तक भयंकर युद्ध हुआ। दोनों दलों के संघर्ष के दौरान कुंभ से अमृत की बूंदें चार स्थानो-प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक पर गिरीं। मान्यता है कि इसीलिए हर 12 साल में इन चारों स्थानों पर कुंभ पर्व आयोजित होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत को देवताओं में बांट दिया, लेकिन एक दैत्य देव-रूप धारण करके देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत पीने में सफल हो गया। कहते हैं कि श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक काट दिया, लेकिन अमर हो जाने के कारण उस दैत्य का मस्तक 'राहु' तथा धड़ 'केतु' के नाम से अस्तित्व में आ गया। अमृत-कुंभ की रक्षा में सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा ने विशेष सहायता की थी। इसी कारण सूर्य, बृहस्पति और चंद्र- इन तीन ग्रहों के विशिष्ट संयोग में ही 'कुंभ' महापर्व मनाया जाता है।

[हरिद्वार में पूर्णकुंभ:] हरिद्वार में पूर्णकुंभ का योग मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में बृहस्पति की उपस्थिति से बनता है- पद्मिनीनायके मेषे कुम्भराशिगते गुरौ। गंगाद्वारे भवेद् योग: कुम्भनामा तदोत्तम:॥

मान्यता है कि ऐसी अति विशिष्ट ग्रह-स्थिति से बने 'कुंभ' योग में हरिद्वार (गंगाद्वार) में गंगा में स्नान करने वाला पुनर्जन्म नहीं लेता।

वृंदावन में कुंभ (बैठक) : प्राचीनकाल से प्रचलित परंपरा के अनुसार, श्रीधाम वृंदावन में हरिद्वार के कुंभ से पूर्व वैष्णवों की बैठक पर आयोजित कुंभ-मेला वसंत पंचमी (20 जनवरी) से फाल्गुनी पूर्णिमा (28 फरवरी ) तक रहेगा। इसमें प्रथम स्नान- 20 जनवरी (बसंत पंचमी), द्वितीय स्नान- 30 जनवरी (माघी पूर्णिमा) और तृतीय स्नान- 13 फरवरी (फाल्गुनी अमावस्या) को होगा। कुछ विद्वानों के मतानुसार, भैमी एकादशी, फाल्गुन कृष्णा एकादशी, महाशिवरात्रि और (फाल्गुन शुक्ल एकादशी) को भी स्नान महापुण्यदायक रहेगा।

[आध्यात्मिक लाभ:] कुंभ-स्नान के माहात्म्य का गुणगान करते हुए एक श्लोक में कहा गया है-

अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च। लक्षं प्रदक्षिणा भूमे: कुंभस्नाने तत्फलम्॥

'एक हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वाजपेय यज्ञ और एक लाख बार पृथ्वी की परिक्रमा करने से जो फल मिलता है, वही फल कुंभ-स्नान से प्राप्त हो जाता है।' हरिद्वार में पूर्णकुंभ का योग 12 वर्षो के लंबे अंतराल के बाद बनता है। इसलिए हमें इस महापर्व से अध्यात्मिक लाभ अवश्य लेना चाहिए। लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े इस पर्व में साधु-संन्यासी और गृहस्थ मिल-जुल कर भाग लेते है।

अमृत पाने की चाह उन्हे कुंभ में ले आती है। ऐसी धारणा है कि कुंभ के पर्वकाल में अमृत पृथ्वी पर आता है। वास्तव में, कुंभ स्नान-दान का महापर्व है, जो हमें सांसारिक बंधनों से मुक्ति दिलाकर सद्गति प्रदान करता है। भारतीय संस्कृति को संपूर्ण विश्व के समक्ष उजागर करने वाला महाकुंभ अध्यात्म के अमृत में डुबकी लगवाकर भव-बंधन से मुक्ति देता है। आत्मोन्नति के ऐसे सुअवसर को हमें हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।

[मुख्य स्नान]

14 जनवरी- मकर संक्रांति

15 जनवरी- मौनी अमावस्या, सूर्यग्रहण

20 जनवरी- बसंत पंचमी

30 जनवरी- माघी पूर्णिमा

12 फरवरी- महाशिवरात्रि- शाही स्नान

15 मार्च-सोमवती अमावस्या-शाही स्नान

16 मार्च- नवसंवतारंभ

24 मार्च- श्रीरामनवमी

30 मार्च- चैत्र पूर्णिमा

[वैष्णव अखाड़ों का स्नान]

14 अप्रैल- मेष संक्रांति- शाही स्नान, पूर्णकुंभ योग

28 अप्रैल- पुरुषोत्तमी वैशाख पूर्णिमा





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