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Wednesday, August 7, 2013

तेनालीराम की कहानी / कौन बड़ा


एक बार राजा कृष्णदेव राय महल में अपनी रानी के पास विराजमान थे। तेनालीराम की बात चली, तो बोले-सचमुच हमारे दरबार में उस जैसा चतुर कोई नहीं है। इसीलिए अभी तक तो कोई उसे हरा नही पाया है।
सुनकर रानी बोली-आप कल तेनालीराम को भोजन के लिए महल में आमंत्रित करें। मैं उसे जरूर हरा दूंगी। राजा ने मुस्कुराकर हामी भर ली। अगले दिन रानी ने अपने हाथों से स्वादिष्ट पकवान बनाए। राजा के साथ बैठा। तेनालीराम उन पकवानों की जी भर प्रशंसा करता हुआ, खाता जा रहा था। खानें के बाद रानी ने उसे बढया पान का बीडा भी खाने को दिया। तेनालीराम मुस्कुराकर बोला-’सचमुच, आज जैसा खाने का आनंद तो मुझे कभी नहीं आया!‘ तभी रानी ने अचानक पूछ लिया-अच्छा, तेनालीराम, एक बात बताओ। राजा ज्यादा बडे है या मैं? अब तो तेनालीराम चकराया। राजा-रानी दोनों ही उत्सुकता से देख रहे थे कि भला तेनालीराम क्या जवाब देता है।
अचानक तेनालीराम को जाने क्या सुझा, उसने दोनों हाथ जोडकर पहले धरती को प्रणाम किया, फिर आसमान को। फिर एकाएक जमीन पर गिर पडा। रानी घबराकर बोली- अरे-अरे, यह क्या तेनालीराम? तेनालीराम उठकर खडा हुआ, बोला- महारानी जी, मेरे लिए तो आप धरती है, राजा आसमान! दोनों में से किसे छोटा, किसे बडा कहूं, समझ में नही आ रहा! वैसे आज महारानी के हाथों का बना भोजन इतना स्वादिष्ट  था कि उन्ही को बडा कहना होगा। इसलिए मैं धरती को ही दंडवत प्रणाम कर रहा था। सुनकर राजा और रानी दोनों की हंसी छुट गई। रानी बोली- सचमुच तुम चतुर हो, तेनालीराम। मुझे जिता दिया, पर हारकर भी खुद जीत गए। इस पर महारानी और राजा कृष्णदेव राय के साथ तेनालीराम भी खिल-खिलाकर हंस दिए।

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