*क्या कारण है कि मदुरै मंदिर, रामेश्वरं सेतु , कोणार्क, अजंता, एलोरा आदि चट्टानें काट कर बनाए गए भव्य प्रासाद , आबू पर्वत का मंदिर, रणथम्बोर का दुर्ग, आमेर और उदयपुर जैसे राजप्रसादों का निर्माण करने वाले सर्वश्रेष्ठ वास्तु - कला के पांडवों से लेकर पृथ्वीराज तक के कम से कम तीन हज़ार साल तक निरंतर शासन करने वाले हिन्दुओं के अपना कहलाने वाले कोई भी स्मारक नहीं?
*यदि उन्होंने कोई स्मारक नहीं बनवाए तो उनके राजसेवक और परिवार कहाँ रहते थे?
*उनके काल को हम सोने की चिड़िया के नाम से जानते है , जहां दूध की नदिया बहती थीं . तत्कालीन साम्राज्यों का अपार धन कहाँ संग्रह करके रखा जाता था?
* हमारे देश में यह कैसे हो गया कि एक अखंड आर्यावर्त रहे देश में भी दिल्ली, आगरा , फतेहपुरसीकरी, इलाहबाद , अहमदाबाद नगर और सारे मध्यकालीन स्मारक तथा उनसे भरपूर नगर भारतीयों ने नहीं अपितु विदेशी आक्रमणकारियों और मुगलों ने बनाए। ....कैसे संभव है?
*भारतीयों शासकों के राजप्रासादों का क्या हुआ. उनके द्वारा बसाए नगरों का क्या हुआ ?
*महान भारतीयों संस्कृति को इस्लाम/अंग्रेज़ी आईने से देखा जाना कब बंद होगा ?
1 comment:
विचारणीय प्रश्न है बढिया आलेख है
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