राधा और कृष्ण के सम्बन्ध में यह चर्चा बार-बार होती रही है और हर नयी पीढी करती भी रहेगी कि श्री कृष्ण ने प्रेम राधा से किया और विवाह रुक्मिणी से क्यों किया।
यदि कृष्ण को विष्णु के अवतार के रूप में मानें तो किसी बहस की आवयश्कता ही नहीं है. भगवान अवतार लेते हैं तो संपूर्ण लीलाओं का निर्धारण करके ही लेते हैं। गोपियाँ-ग्वाले सब उन्हीं के अंश हैं। परमात्मा और आत्मा का एकाकार हैं। अद्वैत की स्थिति है।
समकालीन परिस्थियों में विवाहेतर संबधों की मान्यता समाज नहीं देता। यह व्यक्तियों पर लागू होता है। यदि श्री कृष्ण और राधा के संबंधों के विषय में इस पर चर्चा उन्हें सामान्य जन के रूप में मानते हुए करें तो यह आज के समाज से मान्य नहीं हो सकते। इस स्थिति में तो वेद व्यास रचित सारे महाभारत की कथाओं पर प्रश्न पर प्रश्न चिह्न लग जायेंगें। इस परिप्रेक्ष्य में यह तो छोटा - सा प्रसंग है।
अतः ऐसे प्रश्न करना निरर्थक है । मेरे विचारानुसार कृष्ण और राधा के संबधों पर मनुष्य के रूप में चर्चा करना व्यर्थ है। भगवान के सम्बन्ध में मात्र श्रद्धा भाव ही होना चाहिए।
--अशोक लव
1 comment:
आप का कथन सत्य है इश्वर को मनुष्य के रूप मैं न देख कर ही आप इतिहास को समझ सकते हैं आप ने समाज मैं फ़ैली भारान्तीयों को बड़े सुंदर तरीके से सुलझाया है
सदेव आपका
लाल मेहता देहरादून
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