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Monday, May 24, 2010

भगवान की सच्ची प्रार्थना / अशोक मेहता


रूस के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री तालस्ताय ने एक कहानी लिखी है| एक पादरी महोदय बहुत बड़े धर्म प्रचारक थे| स्थान स्थान पर जा कर ईसा महोदय का उपदेश देते थे| वह बाइबिल में लिखी प्रार्थनाएँ लोगों को सिखलाते थे| लोगों को बतलाते थे की ये प्रार्थनाएँ करने से तुम्हारा कल्याण होगा| अपने देश के अलावा वे दूसरे देशों में भी जाकर अपने धर्म का प्रचार करते थे| एक बार वे धर्म प्रचार के लिए समुद्री जहाज से कहीं जा रहे थे|

उन्हें सागर में एक छोटा सा द्वीप दिखाई दिया| उन्होंने जहाज के कप्तान को जहाज को उस द्वीप की ओर ले जाने को कहा| उन्होनें सोचा शायद वहां कोई व्यक्ति हो, चलो उसके पास चलें| उसे ईश्वर की प्रार्थना करने का मार्ग बताएं| यह सोचकर वे अपने सहयोगियों के साथ उस द्वीप में उतर गए| इधर उधर देखा परन्तु कोई दिखाई नहीं दिया| तभी द्वीप के दूसरी ओर से तीन बूढ़े आते दिखाई दिये| पादरी महोदय रुक गए| बूढ़े निकट आये तो पादरी ने देखा-उनकी दाढ़ियाँ सफ़ेद हैं,उनके सर के बल भी सफ़ेद हैं| वृक्षों की छाल से उन्होंने अपने तन को ढक रखा है| कोई भी वस्तु उनके पास में नहीं थी| पादरी ने उनसे पूछा- यहाँ कोई गाँव अथवा शहर नहीं है?

एक वृद्ध ने कहा- नहीं इस द्वीप में हम तीनो रहते हैं| चौथा कोई नहीं| यहाँ फल हैं वे खा लेते हैं| यहाँ पानी है वो पी लेते है|कभी कोई भुला भटका आ जाये तो उसे भी फल और पानी दे देते हैं|

पादरी ने कहा- यही करते हो? अरे अभागो, उस ईश्वर को याद करो जिसने तुम्हें उत्पन्न किया है|

दूसरे वृद्ध ने कहा-उसे तो हम हमेशा स्मरण करते ही हैं| उसे स्मरण करने के अतिरिक्त हमें और कोई काम है ही नहीं|

पादरी ने पूछा- किस प्रकार स्मरण करते हो?

तीसरे वृद्ध ने कहा- हम तीनो बैठ जाते हैं| ऊपर देखते हैं और हाथ उठा कर कहते हैं हम तीन हैं तुम भी तीन हो हमारी रक्षा करो!

पादरी ने कहा- यह क्या मूर्खों की सी प्रार्थना है? तुम लोग बूढ़े हो गए हो| सारा जीवन तुमने नष्ट कर दिया| बैठो मैं तुम्हें वास्तविक प्रार्थना सिखाता हूँ|

और पर्याप्त समय लगा कर पर्याप्त प्रयत्न करने के पश्चात उसने बाइबल में लिखी हुई प्रार्थना उन्हें सिखाई, उनसे सुनी,और जब तसल्ली हो गयी की वे ठीक तरह से सीख गए हैं, तो अपने जहाज में बैठ कर वापस चल दिये| खुले समुद्र में पहुंच गए| एक दिन व्यतीत हो गया| दूसरे दिन प्रातः जहाज पर खड़े एक व्यक्ति ने पीछे की ओर देख कर कहा- पादरी महोदय, दूर वह काला सा धब्बा क्या है?

पादरी ने पीछे की ओर देखा; बोला कुछ है तो सही जैसे कोई द्वीप हो, परन्तु उधर से तो हम आए हैं| उधर तो कोई द्वीप नहीं था| उन बूढों वाला द्वीप तो बहुत पीछे रह गया है|

तभी उस व्यक्ति ने कहा पादरी जी ! एक नहीं तीन धब्बे हैं और वे और बड़े होते जा रहे हैं, जैसे हमारे समीप आ रहे हों|

उस व्यक्ति ने कहा परन्तु पादरी जी हम तो परे जा रहे हैं, लगता है वो कई समुद्री पशु हैं जो हमारा बड़ी तेजी से कर पीछा कर रहे हैं|

कुछ ही देर में जहाज में सवार सभी व्यक्तिओं ने देखा कि वे पशु नहीं थे, वे वही तीनों वृद्ध व्यक्ति थे, जिनको एक दिन पूर्व उस छोटे से द्वीप में वे प्रार्थना सिखा कर आये थे| इस समय तीनों पानी पर दौड़े चले आ रहे थे| हाथ उठा कर आवाज देकर रुकने को कह रहे थे| पादरी ने चिल्ला कर कहा जहाज रोको|

जहाज रुका, परन्तु पादरी महोदय चकित थे कि ये लोग पानी पर कैसे दौड़ रहे हैं? डूबते क्यों नहीं?

उन तीनों बूढों ने जहाज में आ कर कहा पादरी महोदय ! हम अनपढ़ व्यक्ति हैं| आप जो प्रार्थना हमें सिखा कर आये थे, वो प्रार्थना हम भूल गए| उसके कुछ शब्द ठीक प्रकार से स्मरण नहीं आरहे हैं| कृपा कर उन्हें हमको फिर से सिखाइए|

पादरी ने आश्चर्य से उनकी ओर देखा और बोले और तुमलोग पानी पर दौड़े किस प्रकार?

एक वृद्ध ने कहा यह तो साधारण सी बात है पादरी महोदय ! हम भगवान से बोले हमें पादरी महोदय के पास जाना है| नौका हमारे पास है नहीं| दौड हम लेंगे| तुम कृपा करो कि हम दौड़ते चले जाएँ, पानी में डूब ना जाएँ और हम चल पड़े|

पादरी ने हाथ जोड़ दिये उनके सामने और सर झुका कर धीरे से बोला महात्मा लोगों, कृपया आप वापस जाएँ| आप वही प्रार्थना करें जो पहले किया करते थे| ईश्वर आप लोगों के हृदय कि आवाज सुनता है, उसे शब्दों की कोई आवश्यकता नहीं है|

यह एक काल्पनिक कहानी है| लेखक महोदय इस कथा से यह बतलाना चाहते हैं कि आनंद- सिंधु , करुणा का सागर भगवान हृदय के प्यार को देखता है| आप के हृदय में उसके लिए प्यार है तो वह मिलेगा अवश्य| मन-ही-मन भगवान् को अपने अत्यन्त समीप समझकर मूकभाषा में प्रार्थना करनी चाहिये। भगवान् सब भाषाएँ समझते हैं, सहज प्रार्थना के लिये किसी अमुक प्रकार के शब्दों की आवश्यकता नहीं है और यह दृढ़ विश्वास रखना चाहिये कि भगवान् मेरे हृदय की सच्ची निर्दोष प्रार्थना को अवश्यअवश्य पूर्ण करेंगे।

तुलसी अपने राम को, हीज भजो या खीज| भूमि पड़े उपजेंगे ही, उलटे सीधे बीज ||


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