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Friday, May 21, 2010

जाकी रही भावना जैसी हरि मूरत देखी तिन तैसी

1. सबसे पहले अपने आप से प्रश्न पूछें , हमने दूसरों के लिए क्या किया ? हमारी आत्मा हमारा सत्य हमारे सामने रख देगी
2. अपने और अपने परिवार के लिए सब जीते हैंजो दूसरों के लिए जीता है , वही महान होता है
3. ये मंदिर , मस्जिद, गुरूद्वारे, आश्रम, सामाजिक -कल्याण केंद्र , पुस्तकालय , वृद्ध-आश्रम , विधवा-आश्रम , विकलांग-सहयोग केंद्र, विद्यार्थी- अनुदान-कोष आदि यूँ ही नहीं बन गएइनका निर्माण करने / कराने वालों ने अनथक प्रयास किएअपने दिन-रात लगाए, श्रम किया, परिश्रम किया, योजनाएँ बनाईंउन्हें साकार रूप देने के लिए वर्षों लगा दिए
4. इन कार्यों ने उन्हें संतोष प्रदान किया कि उन्होंने वर्तमान समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ किया हैउन्हें लगा उनका जन्म लेना सार्थक हुआ
5. कुछ लोगों ने समाज के लिए कुछ नहीं कियाउन्होंने उन पर भाँति-भाँति के आरोप लगाए जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर दिया था
6. जाकी रही भावना जैसी हरि मूरत देखी तिन तैसी।

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