श्री विद्या- श्री यंत्र - यह दस महा विद्याओं में से एक तीसरे क्रम पर आने वाली श्री विद्या के नाम से जानी जाती है इस विद्या के यंत्र को श्री यंत्र या श्री चक्र कहते हैं । इसकी अधिष्ठात्री देवी भगवती षोडशी त्रिपुर सुन्दरी हैं, ललिता त्रिपुर सुन्दरी और बाला त्रिपुर सुन्दरी के नाम से भी जाना जाता है, पंचप्रेतासन पर इनका आसन स्थित है । श्री यंत्र को ही पूर्ण यंत्र माना जाता है । श्री विद्या के उपासक को साक्षात शिव माना जाता है । श्री विद्या चारों धर्म अर्थ, काम और मोक्ष की दात्री है । इन्हें काम कामेश्वरी भी कहते हैं , ये कामेश्वर के अंक में विराजमान हैं ।
चित्र में स्फटिक श्री यंत्र, कागज का श्री यंत्र , श्री चक्र पूजन चित्र , और भगवती ललिता त्रिपुर सुन्दरी के चित्र हैं । श्री यंत्र या श्री चक्र या श्री विद्या पूजन में षोडशाक्षरी मंत्र, श्री सूक्त , त्रिपुर सुन्दरी स्तोत्र का पाठ अनिवार्य है , अन्यथा श्रीयंत्र की पूजा उपासना का फल प्राप्त नहीं होता ।
श्री यंत्र ऊर्ध्वमुखी और अधोमुखी त्रिकोणों की संख्या परिवर्तन के अनुसार दो प्रकार के होते हैं एक को हादि विद्या तथा दूसरे को कादि विद्या का श्रीयंत्र कहते हैं । दोनों के पूजन के फल और पूजन प्रक्रिया भी बदल जाती है । श्री यंत्र तॉंगे, सोने या चांदी पर भी उत्कीर्ण करवा कर बनवाये जाते हैं कुछ लोग भोजपत्र पर इन्हें अंकित कर पूजन करते हैं । श्री यंत्र में षोडषोपचार पूजा ही करना चाहिये , नियमित पूजा की विधि भिन्न रहती है । श्री यंत्र को सदैव गुप्त रखा जाना चाहिये ।
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Sphatik shree yantra