सुजलाम् सुफलाम् मलयज् शीतलाम्
सस्यश्यामलम् मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिणिम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् ।।
वंदे मातरम् ।
कोटि–कोटि-कंठ कल-कल-निनाद-कराले
कोटि–कोटि-भुजैघृत-खरकरवाले
अबला केन माँ एत बले।
बहुबलधारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम् ।।
वंदे मातरम् ।
तुमि विद्या तुमि धर्म
तुमि ह्रदि, तुमि मर्म
त्वं हि प्रणाः शरीरे
बाहूते तुमि माँ शक्ति
ह्दये तुमि माँ भक्ति
तोमारइ प्रतिमा गडि मंदिरे मंदरे ।।
वंदे मातरम् ।
त्वं हि दुर्गादशप्रहरमधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी
नमामि त्वं नमामि कमलाम्
अमलाम् अतुलाम् सुजलाम् सुफलाम् मातरम् ।।
वंदे मातरम् ।
श्यामलाम् सरलाम् सुष्मिताम् भूषिताम्
धारिणीम् भारिणीम् मातरम् ।।
वंदे मातरम् ।
- ७ नवम्वर १८७६ बंगाल के कांतल पाडा गांव में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने ‘वंदे मातरम’ की रचना की ।
- १८८२ वंदे मातरम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंद मठ’ में सम्मिलित ।
- १८९६ रवीन्द्र नाथ टैगोर ने पहली बार ‘वंदे मातरम’ को बंगाली शैली में लय और संगीत के साथ कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में गाया।
- मूलरूप से ‘वंदे मातरम’ के प्रारंभिक दो पद संस्कृत में थे, जबकि शेष गीत बांग्ला भाषा में।
- वंदे मातरम् का अंग्रेजी अनुवाद सबसे पहले अरविंद घोष ने किया।
- दिसम्बर १९०५ में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में गीत को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया, बंग भंग आंदोलन में ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रीय नारा बना।
- १९०६ में ‘वंदे मातरम’ देव नागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया, कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसका संशोधित रूप प्रस्तुत किया ।
- १९२३ कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे ।
- पं. नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम अजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव की समिति ने २८ अक्तूबर १९३७ को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में इस राष्ट्रगीत के गायन को अनिवार्य बाध्यता से मुक्त रखते हुए कहा था कि इस गीत के शुरुआती दो पैरे ही प्रासंगिक है, इस समिति का मार्गदर्शन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किया ।
- १४ अगस्त १९४७ की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ ‘वंदे मातरम’ के साथ और समापन ‘जन गण मन..’ के साथ..।
- १९५० ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रीय गीत और ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान बना ।
- २००२ बी।बी.सी. के एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत।
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26 अक्टूबर 1937 को पं- जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कलकत्ता में कांग्रेस की कार्यसमिति ने इस विषय पर एक प्रस्ताव स्वीकृत किया। इसके अनुसार ‘‘ यह गीत और इसके शब्द विशेषत: बंगाल में और सामान्यत: सारे देश में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ राष्ट्रीयय तिरोध के प्रतीक बन गए। ‘वन्दे मातरम् ये शब्द शक्ति का ऐसा पस्त्रोत बन गए जिसने हमारी जनता को प्रेरित किया और ऐसे अभिवादन हो गए जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की हमें हमेशा याद दिलाता रहेगा।
गीत के प्रथम दो छंद सुकोमल भाषा में मातृभूमि और उसके उपहारों की प्रचुरता के बारे में देश में बताते हैं। उनमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर धार्मिक या किसी अन्य दृष्टि से आपत्ति उठाई जाए।
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