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Tuesday, March 16, 2010

विक्रमी संवत २०६७ पर माँ कामख्या देवी का आशीर्वाद !

यह माँ कामाख्या देवी की प्रतिमा का असली चित्र है । माँ का कामिया सिन्दूर जगत प्रसिद्ध है. यह शक्ति पीठ 52 शक्तिपीठों में एक प्रमुख शक्ति पीठ है. देवी कामाख्या का यूं तो नाम मात्र लेने से ही अतुल वैभव, शक्ति, सामर्थ्य व ऐश्वर्य मनुष्य मात्र के दाएँ-बाएँ घूमता है ।
विक्रमी संवत समय गणना की सबसे प्राचीन पद्धति है , यह अंग्रेजी ईसवी सन से 57 साल आगे चलता है । तात्पर्य यह कि विक्रमी संवत प्रारंभ होने के 57 साल बाद ईसवी सन प्रारंभ हुआ । अन्य काल पद्धतियां उससे भी बाद में प्रारंभ हुईं। विक्रमी संवत पंचाग चन्द्र गति गणना पर आधारित है जो कि एकदम सटीक होता है। इसमें चन्द्र मास का प्रमाणिक मान 27-1/4 होता है , जिसका मनुष्य के रक्त प्रवाह , स्त्रियों के रजोधर्म और माला के 108 दानों , जन्म कुण्डली के 12 भाव और 9 ग्रहों से विशेष ताल्लुक रहता है . इनका गुणा भी 108 ही आता है .27 नक्षत्र 4 दिशा का गुणा भी 108 आता है. ये सब पंचागीय व ज्योतिषीय गणना के हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण होते हैं।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ, विक्रमी संवत २०६७ का का आगमन, नवरात्र प्रारंभ। वर्ष प्रतिपदा:इसी दिवस से पितामह ब्रह्मा ने सृष्टि का सृजन किया था। प्रकृति की प्रसन्नता, नवीन परिवर्तन का आभास,पतझड की समाप्ति के बाद वसंत ऋतु का आरंभ खुशी-हास्य सर्वत्र बिखर रहा है वर्ष प्रतिपदा सुहानी-सुगंधित-सुवासित, मादकता लिए,
हमारे और राष्ट्र के लिए सुखद अनुभूति और सन्देश लिए अवतरित उषाकाल की प्रथम किरण के साथ..विक्रमी संवत २०६७ का का आगमन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के साथ , नवरात्र प्रारंभ.. नव वर्ष आपके , राष्ट्र के लिए समृद्धि , वैभव और सुरक्षा का सन्देश लाए यही कामना है।

संवत्सरों (60) के चक्र में से 37वें संवत्सर विक्रम संवत 2067 का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 15 मार्च 2010(16 मार्च 2010) की रात्रि को हो रहा है। हिंदू तिथि के अनुसार नव संवत्सर का आरंभ चैत माह की प्रतिपदा से होता है और बंसत के आगमन का स्वागत।
भारत के विभिन्न राज्यों में अपने ही तरीके में नया साल मनाते है.कश्मीर में रहने वाले लोग इसे "नवरेह्", दक्षिणी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के भारतीय राज्यों में इसे "उगादि", महाराष्ट्र व गोवा के लोग इसे "गुडी पाडवा", और सिंधी "चैती चांद" के नाम से मनाते है।

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