। । वंदना । ।
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्र आवृता ।
या वीणा वर दंड मंडित करा या श्वेत पद्मासना । ।
या ब्रह्मा अच्युत शंकर प्रभृति भिर्देविः सदावंदिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा । ।
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* अर्थ :जो कुंद फूल, चंद्रमा और बर्फ के हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं| जिनके हाथ, श्रेष्ठ वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमल पर आसन ग्रहण करती हैं|ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिदेव, जिनकी सदैव स्तुति करते हैं| हे माँ भगवती सरस्वती, आप मेरी सारी (मानसिक) जड़ता को हरें|
। । वंदना । ।
शुक्लां ब्रह्म विचार-सार-परम आमाद्यं जगत व्यापिनीं ।
वीणा पुस्तक धारिनीम भयदां जाड्या अन्धकार अपहां । ।
हस्ते स्फटिक मालिकां विदधतीं पद्म आसने संस्थितां ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धि प्रदां शारदां । ।
सरस्वती महाभागे विद्ये कमल लोचने ।
विद्या रूपे विशाल अक्षे विद्यां देहि नमो: स्तुते । ।
"सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
ReplyDeleteवासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"
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क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
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संपादक : सरस पायस