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Friday, October 30, 2009

नवम्बर के पर्व-त्योहार


1 नवम्बर: वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत, श्रीकाशीविश्वनाथ-प्रतिष्ठा दिवस, सिद्धवट-यात्रा एवं हरि-हर मिलन (उज्जैन),चौमासी चौदस, पाक्षिक प्रतिक्रमण (जैन)।

2 नवम्बर: स्नान-दान-व्रत की कार्तिक पूर्णिमा, गंगा-स्नान, देव-दीपावली (काशी), निम्बार्क जन्मोत्सव 5105 वाँ, गुरु नानक जयंती- नानकशाही सम्वत् 541 शुरू, रासपूर्णिमा (गौडीय वैष्णव), स्वामी कार्तिकेय दर्शन-पूजन, पुष्कर-स्नान (राजस्थान), शिप्रा-स्नान एवं श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जैन), केदार व्रत (उडीसा), श्रीसत्यनारायण पूजा-कथा, सोनपुर मेला समाप्त (बिहार), भीष्मपंचक समाप्त, सामा-विसर्जन (मिथिलांचल), कार्तिक-स्नान पूर्ण, तुलसी-विवाहोत्सव पूर्ण, सिद्धाचल-यात्रा, श्रीपा‌र्श्वनाथ-रथयात्रा (जैन)

3 नवम्बर: गोप (मार्गशीर्ष) मास प्रारम्भ, कात्यायनी देवी की मासपर्यन्त पूजा

4 नवम्बर: रोहिणी व्रत (दिग। जैन)

5 नवम्बर: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत

7 नवम्बर: वीड पंचमी-श्रीमनसादेवी शयन एवं श्रीविषहरा पूजा (मिथिलांचल), अन्नपूर्णा माता का 16 दिवसीय व्रत प्रारम्भ (काशी), रथोत्सव पंचमी (जैन) 8 नवम्बर: वैधृति महापात देर रात 3.55 से

9 नवम्बर: कालभैरवाष्टमी (कालाष्टमी), भैरव जयंती व्रतोत्सव, श्रीकालभैरव दर्शन-पूजन (काशी, उज्जयिनी), अष्टका श्राद्ध, श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जैन), वैधृति महापात प्रात: 8.55 तक

10 नवम्बर: प्रथमाष्टमी (उडीसा), अनला नवमी (उडीसा), अन्वष्टका नवमी

11 नवम्बर: श्रीमहावीर स्वामी दीक्षा कल्याणक (जैन)

12 नवम्बर: उत्पन्ना एकादशी व्रत (स्मार्त), वैष्णवों का दूसरे दिन व्रत

14 नवम्बर: शनि-प्रदोष व्रत, नेहरू जयंती, संत ज्ञानेश्वर समाधि उत्सव

15 नवम्बर: मासिक शिवरात्रि व्रत, बिरसा मुण्डा जयंती (झारखण्ड), पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत. जैन)

16 नवम्बर: स्नान-दान-श्राद्ध की सोमवती अमावस्या, सूर्य की वृश्चिक-संक्रान्ति दिन में 11.11 बजे, पुण्यकाल सूर्योदय से पूर्वाह्न 11.11 तक, संकल्प में 'हेमन्त ऋतु' का प्रयोजन प्रारम्भ, श्रीमहाकाल की सवारी (उज्जैन)

17 नवम्बर: मार्तण्डभैरव षट्रात्र प्रारम्भ (महाराष्ट्र), रुद्रवत (पीडिया), लाला लाजपतराय बलिदान दिवस

18 नवम्बर: नवीन चन्द्र-दर्शन

19 नवम्बर: हज सफर शुरू (मुस.), महारानी लक्ष्मीबाई जयंती, इंदिरा गाँधी जन्मदिवस, एकता दिवस, स्वामी अखण्डानंद का निर्वाणोत्सव

20 नवम्बर: वरदविनायक चतुर्थी व्रत

21 नवम्बर: श्री सीता-राम विवाहोत्सव (मिथिलांचल, अयोध्या), विहार पंचमी- श्रीबाँकेबिहारी का प्राकट्योत्सव (वृंदावन), नागपंचमी (दक्षिण भारत), श्रीपंचमी व्रत, व्यतिपात महापात रात्रि 12.49 से

22 नवम्बर: स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत, सुब्रह्मण्यम षष्ठी (गुहषष्ठी-दक्षिण भारत), श्रीअन्नपूर्णा माता का धान से श्रृंगार (काशी), सूर्य सायन धनु राशि में प्रात: 9.53 बजे, खण्डेराव-सवारी, व्यतिपात महापात प्रात: 7.37 तक

23 नवम्बर: चम्पाषष्ठी, मार्तण्ड भैरवोत्थापन, सत्यसाईबाबा जन्मदिवस, मूलकरूपिणी षष्ठी (बंगाल), अन्नपूर्णा-व्रत प्रारम्भ (गुजरात)

24 नवम्बर: मित्र सप्तमी, भक्त नरसिंह मेहता जयंती, त्रिदिवसीय कात्यायनी महापूजा प्रारम्भ, गुरु तेगबहादुर शहीदी 25 नवम्बर: श्रीदुर्गाष्टमी, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, बुधाष्टमी पर्व (सूर्यग्रहणतुल्य)

26 नवम्बर: नन्दिनी नवमी, जैन दिवाकर चौथ की पुण्यतिथि (स्था. जैन), Thanks giving day (Christian)

27 नवम्बर: दशादित्य व्रत, हज (मुस.)

28 नवम्बर: मोक्षदा एकादशी व्रत, वैकुण्ठ एकादशी (दक्षिण भारत), मौनी ग्यारस (जैन), श्रीमद्भगवद्गीता जयंती, ईद-उल-जुहा (बकरीद)

29 नवम्बर: अखण्ड द्वादशी, व्यंजन द्वादशी, धन द्वादशी (उडीसा), प्रदोष व्रत, श्यामबाबा द्वादशी-ज्योति, First Sunday in advent (Christian)

30 नवम्बर: भरणी दीपम् (दक्षिण भारत), अनंग त्रयोदशी व्रत।

Wednesday, October 28, 2009

मोहयाल मित्तर के संपादक श्री एन.डी.दत्ता जी का निधन / अशोक लव

जीवन के अन्तिम सार्वजानिक कार्यक्रम में ( देहरादून,३ अक्टूबर)
मोहयाल - भवन अम्बाला के समारोह में
*चित्र --मोहयाल-दिवस २००८ , नई दिल्ली

जीवन के अन्तिम सार्वजानिक कार्यक्रम में ( देहरादून,३ अक्टूबर) <- चित्र
श्री एन डी दत्ता जी का २७ अक्टूबर २००९ को निधन हो गया। वे लगभग २० वर्षों से ' मोहयाल मित्तर ' पत्रिका के कार्यकारी संपादक थे। वे पूर्णतया स्वस्थ थे और 'मोहयाल यूथ कैम्प' में एक से चार अक्टूबर तक देहरादून रहे थे। चार अक्टूबर को दिल्ली लौटने पर उनकी तबीयत ख़राब हो गई। उन्हें पक्षाघात हुआ। पहले उन्हें जीवन ज्योति नर्सिंग होम में डॉ रमेश दत्ता को दिखाया गया। उनके कहने पर उन्हें ' कालरा हॉस्पिटल' कीर्ति नगर में दाखिल किया गया। स्वस्थ न होने पर उन्हें मेक्स हॉस्पिटल , साकेत में एडमिट कराया गया। २३ अक्टूबर को मेरी उनके पुत्र श्री अनिल दत्ता से बातचीत हुई। उन्होंने बताया था कि सुधार हो रहा है। दस-बारह दिनों में घर आ जाएँगे। ठीक होते - होते छः महीने लग जाएँगे। श्री एन डी दत्ता जी की आवाज़ भी चली गई थी। हम सब उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहे थे।

मैंने उनके साथ एक अक्टूबर को देहरादून कैम्प जाना था। उन्होंने टिकट भी बुक करा दी थी। अस्वस्थ होने के कारण मैं देहरादून न जा सका और उन्हें रेल-टिकट कैंसल कराने के लिए कहा। उस समय यह ध्यान न आया कि उनके साथ अब कभी यात्रा न कर सकूँगा।
मैं ' मोहयाल मित्तर' पत्रिका का सन् १९८७ से हिन्दी संपादक था। एन डी दत्ता जी ने लगभग एक वर्ष बाद इंगलिश के संपादक का कार्यभार संभाला। हम दोनों वर्षों तक साथ- साथ कार्य करते रहे। समाज - सेवा का कार्य था। वे मेरे पिता-तुल्य थे। आयु में बहुत अन्तर था। फिर भी मेरे लिए वे हमेशा मित्र, बड़े भाई, मार्गदर्शक और शुभचिंतक भी रहे।वे हँसमुख और बहुत सक्रिय थे। इंगलिश भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था। उनके जैसे इंगलिश के संपादक कम हुए हैं। उनके इंगलिश के भाषण मंत्रमुग्ध कर देते थे। कई महीनों से हम 'मोहयाल मित्तर' के संपादक -पद को छोड़ देने पर आपस में विचार करते रहते थे।मैंने एक अक्टूबर को इस पद से त्यागपत्र दे दिया। वे इस संसार से विदा हो गए। नवम्बर२००९ के 'मोहयाल मित्र' में हम दोनों का नाम नहीं होगा। यह अद्भुत संयोग है!
उनका अन्तिम - संस्कार २७ अक्टूबर को हुआ। इस दुखद अवसर पर सगे-सम्बन्धियों के अतिरिक्त जी एम एस और स्थानीय मोहयाल सभाओं के पदाधिकारी और सदस्य उपस्थित थे। श्री जी एल दत्ता जोश, श्री ओ पी मोहन, मेजर एस एस दत्ता,श्री अशवनी बाली, श्री एस के छिब्बर, श्री योगेश मेहता, श्रीमती कृष्ण लता छिब्बर, श्री डी वी मोहन (जी एम एस ), श्री रमेश दत्ता, श्री सुरजीत मेहता, श्री बलराम दत्ता, श्री अजय दत्ता (फरीदाबाद), श्री पी के दत्ता (सिस्टोपिक कम्पनी) श्री दलीप सिंह दत्ता (यमुनापार) श्री जे सी बाली (एम पी स्कूल), श्री विमल छिब्बर ( द्वारका) , श्री संदीप दत्ता (जनकपुरी ), श्री सुभाष दत्ता ( अशोक विहार), श्री गीता छिब्बर, श्री अविनाश दत्ता (उत्तम नगर),श्री नरेश दत्ता (रोहणी) , डॉ रमेश दत्ता ( ज्योति नर्सिंग होम,विकासपुरी),श्री पी एल मेहता (पीतमपुरा),श्री एस एन दत्ता ( एम पी स्कूल),श्री सुखदेव लौ ( वेस्ट ज़ोन ),श्री जगदीश बाली ( गुडगाँव),श्री रंगनाथन ( जी एम एस, आफिस) आदि उनके लगभग २०० से अधिक शुभचिंतकों ने उन्हें भावपूर्ण अन्तिम विदाई दी।
स्वर्गीय एन डी दत्ता जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए ३० अक्टूबर को आर्य समाज मन्दिर, विकासपुरी ( आउटर रिंग रोड ) , नई दिल्ली में से बजे तक श्रद्धांजलि-सभा होगी
भगवान से विनम्र निवेदन है कि वे श्री एन डी दत्ता जी की आत्मा को सदगति प्रदान करें शान्ति! शान्ति!शान्ति !
*
स्वर्गीय श्री एन डी दत्ता दत्ता जी के निधन पर प्राप्त संदेश--
*
श्री एन डी दत्ता जी ज़मीन से जुड़े मोहयाल थे। उनमें अहं का नामोनिशान तक नहीं था। वे एक मिनट में दूसरे को अपना बना लेते थे। उन्होंने जी एम एस के लिए जो काम किया है उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे हमेशा खुश रहते थे। उन्होंने हमें ज़िंदगी को ईमानदारी से जीने की प्रेरणा दी थी। वे युवाओं के साथ युवा हो जाते थे। भगवान उनकी आत्मा को सद्गति दें.
--मनीष बाली
(लुधिआना )
*
एन डी दत्ता जी के निधन की सूचना पाकर हम हैरान रह गए। उनके एडिटोरियल मोहयाल मित्तर में पढ़ते रहते थे। इंगलिश सेक्शन उनके कारण ही इतना अच्छा रहता था। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दें. परिवारजन के प्रति हमारी शोकसंवेदनाएं।
--सुरेन्द्र कुमार लौ (जयपुर )
* एन डी दत्ता जी की कमी हमेशा खलती रहेगी। मोहयाल मित्तर के द्वारा उनके साथ हम जुड़े हुए थे। भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दें।
--डॉ नीना छिब्बर ( जोधपुर)
* एन डी दत्ता जी के साथ हमारा कई सालों का सम्बन्ध था। वे हंसमुख और मिलनसार थे। हमारी श्रद्धांजलि !
--नवदीप दत्ता (अम्बाला)
*श्री एन डी दत्ता जी जैसे संपादक जी एम एस को शायद ही मिल पाएँ। हम उनकी इंगलिश से बहुत कुछ सीखते थे।
उन्हें कई बार सुनने के मौके भी मिले। ऐसे हरदिलअज़ीज़ इन्सान बहुत कम होते हैं। इस दुःख के मौके पर हम उनके परिवार के साथ हैं।
श्री एन डी दत्ता जी की आत्मा प्रभु के चरणों में निवास करे।
--श्रीमती सुमन दत्ता ( नई दिल्ली )
* श्री एन डी दत्ता जी हमारे परिवार के बड़े थे। पापा जी से उनके बारे में पता चलता रहता था। हम पर उनका स्नेह था। उनकी बीमारी से चिंतित थे। उनके निधन के समाचार पर विश्वास नहीं हुआ।
भगवान उनकी आत्मा को सद्गति दें।
~~ऋचा मेहता ( फरीदाबाद)
*
श्री एन डी दत्ता जी अंतिम समय तक मोहयाल बिरादरी की सेवा करते रहे। वे यूथ कैम्प में युवाओं को प्रेरणा देने गए। हर महीने मोहयाल मित्तर का काम करना... इस उम्र में यह सब मुश्किल होता है। पर उन्होंने किया। वे सचमुच सच्चे सोशल-वर्कर थे। हमारे परिवार की श्रद्धांजलि !
~~रमन लौ (पीतमपुरा)
*
श्री एन डी दत्ता जी के काम करने का अवसर मिला था। मोहयाल आश्रम हरिद्वार के मैनेजर के रूप कार्य करते समय उनका स्नेह मिला। वे विद्वान और बड़े एक्टिव थे। हमेशा सबको खुश रखते थे। हमारे प्रेरक थे। हमें ही नहीं पूरी मोहयाल बिरादरी को उनकी कमी महसूस होती रहेगी। भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दें !
--सुभाष दत्ता ( नई दिल्ली)
* श्री एन डी दत्ता जी के निधन से एक और कर्मयोगी मोहयाल कम हो गए। ऐसे मोहयाल जो सबको अपना बना लें कम हैं। हमारी श्रद्धांजलि !
--राजेंद्र कुमार बक्षी ( गुडगाँ )
*श्री एन डी दत्ता जी के परिवार के सदस्यों तक हमारी शोक-संवेदना पहुँचा दें। भगवान उनकी आत्मा को सद्गति दें।
--श्रीमती पी वैद (कानपुर)
*भगवान से प्रार्थना है वे श्री एन डी दत्ता जी की आत्मा को अपनी शरण में रखें।मोहयाल मित्र के सदस्यों को उनकी कमी महसूस होती रहेगी। वे इंगलिश के स्कॉलर थे।
--सचिन बाली (वैशाली)
*श्री एन डी दत्ता जी को मोहयाल सभा द्वारका की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।
उन्होंने बीस से अधिक वर्षों तक मोहयालों की निस्वार्थ भाव से सेवा की है। मोहयाल मित्र के इंगलिश के संपादक के रूप में तो वे हमेशा याद किए ही जाएँगे, एक नेकदिल,हँसमुख और स्पष्टवादी इन्सान के रूप में हम उन्हें हमेशा याद रखेंगे। -
--गुलशन मेहता ( प्रेजिडेंट ), विमल छिब्बर ( जनरल सेक्रेट्री )

श्री कृष्ण के कर्म,भक्ति और ज्ञान योग : सरल परिचय

गीता में श्री कृष्ण

''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''What is Karma yoga?
A person situated in Karma yoga executes one's prescribed duties. These duties are as prescribed by the Varnashrama system created By Krishna through the Vedas. According to one's ability and inclination, a person may acquires a particular varna. He may become a Brahaman (teacher, guide), Ksatriya (administrator, warrior), Vaishya (merchant, farmer) or Sudra (worker). According to his situation he lives in one of the four ashrams: Brahamacari (student), Grahastha (married), Vanaprastha (retired) and Sannyasa (detached). The eight fold Varnashram system is created to allow one to be aware of his prescribed duties and execute them properly. It is important to note here is that the BG stresses that a varna is acquired by one's ability and inclination, never by birth. So in the BG, there is no support of the "caste-system" prevalent in India. The Varnashram system appears naturally in all societies over the world.

Performing prescribed duties will earn a person much pious credit, but it will also continue to bind him to the material world. So Karma can be "sakarma" (done in anticipation of enjoying its fruits) or "nishkarma" (detached from the results). In both cases a person is attached to performing the activity. However, when a person performs activities only for the pleasure of the Lord, he has reached the stage of Bhakti. For instance Sadhna (japa, arati, kirtan) are activities performed with no material motives, simply to glorify or remember the Lord. Thus Karma yoga can be used to elevate one self to the position of Bhakti yoga by first performing prescribed activities, then renouncing the fruits of the activities to Krishna and finally by renouncing the activity in itself to Krishna.

''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''What is Bhakti yoga?
The path of devotion is described as the most confidential path back to Godhead. It is described as the "elevator" approach to Krishna as opposed to all the other "staircase" paths. The essence of the Bhakti yoga is summarized by Sri Krishna in Chapter 9, Verse 34, as follows: "Engage your mind always in thinking of Me, become My devotee, offer obeisances to Me and worship Me. Being completely absorbed in Me, surely you will come to Me."

This verse, often considered to be the summary verse of the entire BG, contains the essence of the existence of a spirit soul. In the material world, trapped in the illusory sense of identifying with the body and its extensions, a spirit soul remains forever bewildered by the duality of existence. However by simply surrendering to Krishna, understanding Him to be the original, primeval cause of all causes and thus worshipping Him without any desires of material benefit, one can easily go back to Him.

Bhakti yoga does not mean inactivity. Indeed a bhakta is most active, for he sees all his activities now in relation to the Supreme. But he is detached from the activity and the fruits of the activity, neither happy in success nor distressed in failure, understanding that all this is ultimately for Krishna and coming from Him only.

''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''What is Jnana yoga?
In the Jnana section Krishna elaborates about the five factors of existence: Isavara (God), Jivatma (Soul), Kala (Time), Karma (actions) and Prakriti (Nature). He explains that while Kala, Prakriti, Jiva and Isavara are eternal, Karama is not. As long as one is involved in fruitive activities, the cycle of Karma, performed in one of the three modes of material Nature (goodness, passion, ignorance) is binding. For every action, good or bad, there is a reaction. This cycle can only be broken by performing devotional service, since that does not have any reactions, good or bad. In this stage the person transcends the material plane of existence and enters into the spiritual realm.

When Krishna explains the path of spiritual advancement by knowledge, Arjuna gets confused between the Karma (action) and Jnana (inaction). Krishna explains that one must strive for activities performed in knowledge of Him, which will ultimately lead to Bhakti. Philosophy without faith is speculation, and faith without philosophy is rituals. The two must complement each other. Thus, Krishna once again stresses that the ultimate goal of all transcendentalists is Him. They may reach Him directly by Bhakti or first reach Bhakti through Karma or Jnana.

We are one family

"We are one Giant family living under the sun,Every person comes to our life for a reason, and every new person we encounter is like a Brand new world to explore!!".

Wednesday, October 21, 2009

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक लव से शिव नारायण का साक्षात्कार

शिव नारायण
मैं वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक लव के कविता - संग्रह " लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान " पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम फ़िल कर रहा हूँ । मैने इसके लिए श्री अशोक लव से उनके कविता -संग्रह और साहित्यिक जीवन के सम्बन्ध में विस्तृत बातचीत कीप्रस्तुत हैं इस बातचीत के अंश -



~ आपको साहित्य सृजन की प्रेरणा कैसे मिली ?
* व्यक्ति को सर्वप्रथम संस्कार उसके परिवार से मिलते हैं। मेरे जीवन में मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि ने अहम भूमिका निभाई है। पिता जी महाभारत और रामायण की कथाएँ सुनते थे। राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत कहानियाँ सुनाते थे। उनके आदर्श थे--अमर सिंह राठौड़ , महारानी लक्ष्मी बाई, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस ,भगत सिंह आदि। वे उनके जीवन के अनेक प्रसंगों को सुनते थे। इन सबके प्रभाव ने अध्ययन की रुचि जाग्रत की। मेरे नाना जी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। वे वेदों और उपनिषदों के मर्मज्ञ थे। उनके साथ भी रहा था। उनके संस्कारों ने भी बहुत प्रभावित किया। समाचार-पत्रों में प्रकाशित साहित्यिक रचनाएँ पढ़ने की रुचि ने लेखन की प्रेरणा दी। इस प्रकार शनैः - शनैः साहित्य-सृजन के संसार में प्रवेश किया।
~ 'लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान' कविता -संग्रह प्रकाशित कराने की योजना कैसे बनी ?
* मेरा पहला कविता-संग्रह ' अनुभूतियों की आहटें ' सन् १९९७ में प्रकाशित हुआ था। इससे पहले की लिखी और प्रकाशन के पश्चात् लिखी गई अनेक कविताएँ एकत्र हो गई थीं। इन कविताओं को अन्तिम रूप दिया । इन्हें भाव और विषयानुसार चार खंडों में विभाजित किया-- नारी, संघर्ष, चिंतन और प्रेम। इस प्रकार पाण्डुलिपि ने अन्तिम रूप लिया। डॉ ब्रज किशोर पाठक और डॉ रूप देवगुण ने कविताओं पर लेख लिख दिए।
कविता-संग्रह प्रकशित कराने का मन तो काफ़ी पहले से था। अशोक वर्मा, आरिफ जमाल, सत्य प्रकाश भारद्वाज और कमलेश शर्मा बार-बार स्मरण कराते थे। अंततः पुस्तक प्रकाशित हो गई। एक और अच्छी बात यह हुई कि दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने इसका लोकार्पण किया, जो महिला हैं। उन्होंने इसके नाम की बहुत प्रशंसा की।
~आपने इसका नाम ' लड़कियों ' पर क्यों रखा ?
* मैंने पुस्तक के आरंभ में ' मेरी कविताएँ ' के अंतर्गत इसे स्पष्ट किया है - " आज का समाज लड़कियों के मामले में सदियों पूर्व की मानसकिता में जी रहा है। देश के विभिन्न अंचलों में लड़कियों की गर्भ में ही हत्याएँ हो रही हैं। ...लड़कियों के प्रति भेदभाव की भावना के पीछे पुरुष प्रधान रहे समाज की मानसिकता है। आर्थिक रूप से नारी पुरुष पर आर्षित रहती आई है। आज भी स्थिति बदली नहीं है। "
समय तेज़ी से परिवर्तित हो रहा है। लड़कियाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। आज की लड़कियाँ आसमान छूना चाहती हैं। उनकी इस भावना को रेखांकित करने के उद्देश्य से और समाज में उनके प्रति सकारात्मक सोच जाग्रत करने के लिए इसका नामकरण ' लड़कियों' पर किया। इसका सर्वत्र स्वागत हुआ है।'सार्थक प्रयास ' संस्था की ओर से इस पर चर्चा-गोष्ठी हुई थी। समस्त वक्ताओं ने नामकरण को आधुनिक समय के अनुसार कहा था और प्रशंसा की थी ।
संग्रह की पहली कविता का शीर्षक भी यही है। यह कविता आज की लड़कियों और नारियों के मन के भावों और संघर्षों की क्रांतिकारी कविता है।
~ 'लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान ' मैं आपने देशी और ग्राम्य अंचलों के शब्दों का प्रयोग किया हैक्यों ?
* इसके अनेक कारण हैं। कविता की भावभूमि के कारण ऐसे शब्द स्वतः , स्वाभाविक रूप से आते चले जाते हैं। 'करतारो सुर्खियाँ बनती रहेंगी , तंबुओं मैं लेटी माँ , छूती गलियों की गंध, जिंदर ' आदि कविताओं की पृष्ठभूमि पंजाब की है। इनमें पंजाबी शब्द आए हैं 'डांगला पर बैठी शान्ति' मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र 'झाबुआ' की लड़की से सम्बंधित है। मैं वहाँ कुछ दिन रहा था। इसमें उस अंचल के शब्द आए हैं। अन्य कविताओं मैं ऐसे अनेक शब्द आए हैं जो कविता के भावानुसार हैं । इनके प्रयोग से कविता अधिक प्रभावशाली हो जाती हैं। पाठक इनका रसास्वादन अधिक तन्मयता से करता है।
~ आपके प्रिय कवि और लेखक कौन-कौन से हैं ?
* तुलसी,कबीर , सूरदास , भूषण से लेकर सभी छायावादी कवि-कवयित्रियाँ , विशेषतः 'निराला', प्रयोगवादी, प्रगतिवादी और आधुनिक कवि-कवयित्रिओं और लेखकों की लम्बी सूची है। ' प्रिय'शब्द के साथ व्यक्ति सीमित हो जाता है। प्रत्येक कवि की कोई न कोई रचना बहुत अची लगती है और उसका प्रशंसक बना देती है। मेरे लिए वे सब प्रिय हैं जिनकी रचनाओं ने मुझे प्रभावित किया है। मेरे अनेक मित्र बहुत अच्छा लिख रहे हैं। वे भी मेरे प्रिय हैं।
~ आपने अधिकांश कविताओं में सरल और सहज शब्दों का प्रयोग किया हैक्यों ?
* सृजन की अपनी प्रक्रिया होती है। कवि अपने लिए और पाठकों के लिए कविता का सृजन करता है। कविता ऐसी होनी चाहिए जो सीधे हृदय तक पहुँचनी चाहिए। कविता का प्रवाह और संगीत झरने की कल-कल -सा हृदय को आनंदमय करता है। यदि क्लिष्ट शब्द कविता के रसास्वादन में बाधक हों तो ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचाना चाहिए। कविता को सीधे पाठक से संवाद करना चाहिए।
मैं जब विद्यार्थी था तो कविता के क्लिष्ट शब्दों के अर्थ जानने के लिए शब्दकोश का सहारा लेता था। जब कविता पढ़ते-पढ़ते शब्दकोश देखना पड़े तो कविता का रसास्वादन कैसे किया जा सकता है? मैंने जब कविता लिखना आरंभ किया , मेरे मस्तिष्क में अपने अनुभव थे। मैंने इसीलिये अपनी कविताओं में सहजता बनाये रखने के लिए सरल शब्दों का प्रयोग किया ताकि आम पाठक भी इसका रसास्वादन कर सके। मेरी कविताओं के समीक्षकों ने इन्हें सराहा है।
साठोतरी और आधुनिक कविता की एक विशेषता है कि वह कलिष्टता से बची है।
~ साहित्य के क्षेत्र में आप स्वयं को कहाँ पाते हैं ?
*
हिन्दी साहित्य में साहित्यकारों के मूल्यांकन की स्थिति विचित्र है। साहित्यिक-राजनीति ने साहित्यकारों को अलग-अलग खेमों / वर्गों में बाँट रखा है। इसके आधार पर आलोचक साहित्यकारों का मूल्यांकन करते हैं।
दूसरी स्थिति है कि हिन्दी में जीवित साहित्यकारों का उनकी रचनाधर्मिता के आधार पर मूल्यांकन करने की परम्परा कम है।
तीसरी स्थिति है कि साहित्यकारों का मूल्यांकन कौन करे ? कवि-लेखक मौलिक सृजनकर्ता होते हैं । आलोचक उनकी रचनाओं का मूल्यांकन करते हैं । आलोचकों के अपने-अपने मापदंड होते हैं। अपनी सोच होती है। अपने खेमे होते है। साहित्य और साहित्यकारों के साथ लगभग चार दशकों का सम्बन्ध है। इसी आधार पर यह कह रहा हूँ।रचनाओं के स्तरानुसार उनका उचित मूल्यांकन करने वाले निष्पक्ष आलोचक कम हैं। इसलिए साहित्यकारों का सही-सही मूल्यांकन नहीं हो पाता। हिन्दी साहित्य से संबध साहित्यकार इस स्थिति से सुपरिचित हैं।
मैं साहित्य के क्षेत्र में कहाँ हूँ , इस विषय पर आपके प्रश्न ने पहली बार सोचने का अवसर दिया है।
मैं जहाँ हूँ , जैसा हूँ संतुष्ट हूँ । लगभग चालीस वर्षों से लेखनरत हूँ और गत तीस वर्षों से तो अत्यधिक सक्रिय हूँ। उपन्यास, कहानियाँ, कवितायें, लघुकथाएँ, साक्षात्कार, समीक्षाएं, बाल-गीत, लेख आदि लिखे हैं। कला-समीक्षक भी रहा हूँ। पत्र-पत्रिकाओं के संपादन से भी संबद्धरहा हूँ। पाठ्य-पुस्तकें भी लिखी और संपादित की हैं।
सन् १९९० में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने उपराष्ट्रपति-निवास में मेरी पुस्तक ' हिन्दी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार ' का लोकार्पण किया था। यह समारोह लगभग दो घंटे तक चला था।
सन् १९९१ में मेरे लघुकथा-संग्रह ' सलाम दिल्ली' पर कैथल (हरियाणा ) की 'सहित्य सभा' और पुनसिया (बिहार) की संस्था ' समय साहित्य सम्मलेन' ने चर्चा-गोष्ठियाँ आयोजित की थीं ।
इसी वर्ष मार्च २००९ में दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने ' अपने निवास पर ' लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान' का लोकार्पण किया।
अनेक सहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन किया है।
पचास के लगभग सामाजिक-साहित्यिक संस्थाएँ पुरस्कृत-सम्मानित कर चुकी हैं।
इन सबके विषय मैं सोचने पर लगता है , हाँ हिन्दी साहित्य में कुछ योगदान अवश्य किया है। अब मूल्यांकन करने वाले जैसा चाहें करते रहें।
~ इन दिनों क्या लिख रहे हैं ?
*'
लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान ' के पश्चात् जून २००९ मैं नईपुस्तक 'खिड़कियों पर टंगे लोग' प्रकाशित हुई है। यह लघुकथा-संकलन है। इसका संपादन किया है। इसमें मेरे अतिरिक्त छः और लघुकथाकार हैं।
इसी वर्ष अमेरिका मेंदो माह व्यतीत करके लौटा हूँ। वहां के अनुभवों को लेखनबद्ध कर रहा हूँ। वर्ष २०१० तक पुस्तक प्रकाशित हो जाएगी। नया कविता-संग्रह भी प्रकाशित कराने की योजना है। इस पर कार्य चल रहा है।
~ आप बहुभाषी साहित्यकार हैंआप कौन-कौन सी भाषाएँ जानते हैं?हिन्दी,पंजाबी और इंग्लिश लिख -पढ़ और बोल लेता हूँ। बिहार में भी कुछ वर्ष रहने के कारण बिहारी का भी ज्ञान है। संस्कृत का भी ज्ञान है। हरियाणा में रहने के कारण हरियाणवी भी जानता हूँ।
~ 'बालिकाएँ जन्म लेती रहेंगी' कविता के द्वारा आपने नारी को ही नारी विरोधी दर्शाया गया हैक्यों ?
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हमारे समाज मैं पुत्र-मोह अत्यधिक है। संतान के जन्म लेते ही पूछा जाता है-'क्या हुआ ?' 'लड़का' -शब्द सुनते ही चेहरे दमक उठाते हैं। लड्डू बाँट जाते हैं। ' लडकी' सुनते ही सन्नाटा छा जाता है। चेहरों की रंगत उड़ जाती है। अधिकांशतः ऐसा ही होता है।
लड़कियों के जन्म लेने पर सबसे अधिक शोक परिवार और सम्बन्धियों की महिलाएँ मनाती हैं। गाँव - कस्बों,नगरों-महानगरों सबमें यही स्थिति है। ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना 'मनुष्य' है। वह चाहे पुरूष है अथवा महिला। फिर भी अज्ञानतावश लोग ईश्वर के सुंदर रचना ' लड़की' के जन्म लेते ही यूँ शोक प्रकट करते हैं मनो किसी की मृत्यु हो गई हो।
पुत्र-पुत्री में भेदभाव की पृष्ठभूमि में सदियों की मानसिकता है। नारी ही नारी को अपमानित करती है। सास-ननद पुत्री को जन्म देने वाली बहुओं -भाभियों पर व्यंग्य के बाण छोड़ती हैं। अनेक माएँ तक पुत्र-पुत्री में भेदभाव करती हैं।
नारी को नारी का पक्ष लेना चाहिए। इसके विपरीत वही एक-दूसरे पर अत्याचार करती हैं। समाज में लड़कियों की भ्रूण-हत्या के पीछे यही मानसिकता है। मैं वर्षों से इस स्थिति को देख रहा हूँ। 'बालिकाएँ जन्म लेती रहेंगी' कवितामें अजन्मी पुत्री अपनी हत्यारिन माँ से अपनी हत्या करने पर प्रश्न करती है। इस विषय पर खंड-काव्य लिखा जा सकता है। मैंने लम्बी कविता के मध्यम से नारियों के ममत्व को जाग्रत करने का प्रयास किया है।
~ आपकी कविताएँ मुक्त-छंद में लिखी गई हैंआपको यह छंद प्रिय क्यों है? * प्रत्येक कवि विभिन्न छंदों में रचना करता है। किसी को दोहा प्रिय है तो किसी को गीत - ग़ज़ल। मैंने कविता लेखन के लिए मुक्त-छंद का चयन किया है। मुझको इसमें अपने भाव और विचार अभिव्यक्त करना सुखद लगता है। यह छंद मेरे स्वभाव में समा गया है। यूँ बाल-गीत अन्य छंदों में लिखे हैं।
मैं छंदबद्ध रचनाओं का प्रशंसक हूँ । गीत-ग़ज़ल-दोहे मुझे प्रिय हैं। मेरे अधिकांश मित्र गीतकार-गज़लकार हैं। मैं उनकी रचनाओं का प्रशंसक हूँ । कुछ मित्रों के संग्रहों की भूमिकाएँलिखी हैं तो कुछ मित्रों के गीत-ग़ज़ल-संग्रहों के लोकार्पण पर आलेख-पाठ किया है।
कविता किसी भी छंद में लिखी गई हो , उसे कविता होना चाहिए। मुक्त-छंद की अपनी लयबद्धता होती है, गेयता होती है, प्रवाह होता है।
~ आपने अनेक विधाओं में लेखन किया हैलघुकथाकार के रूप में आपकी विशिष्ट पहचान क्यों है?
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लघुकथा की लोकप्रियता की पृष्ठभूमि में अनेक साहित्यकारों द्वारा समर्पित भाव से किए कार्य हैं। सातवें और विशेषतया आठवें दशक में अनेक कार्य हुए। हमने आठवें दशक में खूब कार्य किए। एक जुनून था। अनेक मंचों से लघुकथा पर चर्चा-गोष्ठियाँ आयोजित कीं। पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से चर्चाएँ-परिचर्चाएँ कीं। दिल्ली दूरदर्शन पर गोष्ठियां कराईं , इनमें भाग लिया। अन्य साहित्यकारों को आमंत्रित किया। अच्छी बहसें हुईं।
हरियाणा के सिरसा,कैथल,रेवाड़ीऔर गुडगाँव में गोष्ठियां कराईं । बिहार के पुनसिया और डाल्टनगंज तक में गोष्ठियों में सक्रिय भाग लिया। दिल्ली-गाजियाबाद में तो कई आयोजन हुए।
लघुकथा -संकलन संपादित किए,अन्य लघुकथा-संकलनों में सम्मिलित हुए। सन् १९८८ में प्रकाशित 'बंद दरवाज़ों पर दस्तकें' संपादित किया जो बहुचर्चित रहा। सन् १९९१ में मेरा एकल लघुकथा - संग्रह प्रकाशित हुआ। 'साहित्य सभा' कैथल (हरियाणा) और 'समय साहित्य सम्मलेन ' पुनसिया (बिहार ) की ओरसे इस पर चर्चा-गोष्ठियाँ आयोजित की गईं।
संभवतः लघुकथा के क्षेत्र में इस योगदान को देखते हुए साहित्यिक संसार में विशिष्ट पहचान बनी है।
~ 'लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान' पर साहित्यकारों और पाठकों की क्या प्रतिक्रिया हुई है?
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इस पुस्तक का सबने स्वागत किया है। इसके नारी-खंड की जो प्रशंसा हुई है उसका मैंने अनुमान नहीं किया था। इस पर एम फिल हो रही हैं। 'वुमेन ऑन टॉप' बहुरंगी हिन्दी पत्रिका में तो अस नाम से स्तम्भ ही आरंभ कर दिया गया है। इसमें इस पुस्तक से एक कविता प्रकाशित की जाती है और विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाली युवतिओं पर लेख होता है। कवयित्री आभा खेतरपाल ने ऑरकुट में 'सृजन का सहयोग' कम्युनिटी के अंतर्गत इस पुस्तक की कविताओं को प्रकाशित करना आरंभ किया था। इन कविताओं पर पाठकों और साहित्यकारों की प्रतिक्रियाएँ पाकर लगता है इन कविताओं ने सबको प्रभावित किया है। जितनी प्रशंसा मिल रही है उससे सुखद लगना स्वाभाविक है।
इनके अतिरिक्त डॉ सुभद्रा खुराना, डॉ अंजना अनिल, अशोक वर्मा , आरिफ जमाल, डॉ जेन्नी शबनम, एन.एल.गोसाईं, इंदु गुप्ता, डॉ अपर्णा चतुर्वेदी प्रीता, कमलेश शर्मा, डॉ कंचन छिब्बर,सर्वेश तिवारी, सत्य प्रकाश भारद्वाज , प्रमोद दत्ता , डॉ नीना छिब्बर, आर के पंकज, डॉ शील कौशिक, डॉ आदर्श बाली, प्रकाश लखानी, रश्मि प्रभा, मनोहर लाल रत्नम, चंद्र बाला मेहता, गुरु चरण लाल दत्ता जोश आदि की लम्बी समीक्षाएँ मिली हैं. इन्होंने इस कृति को अनुपम कहा है। आप तो इस पर शोध कर रहे हैं।
अपनी रचनाओं का ऐसा स्वागत सुखद लगता है।

Sunday, October 11, 2009

फोटोग्राफ्स :मोहयाल यूथ कैम्प देहरादून अक्टूबर २००९

फ़ोटो बड़े साइज़ में देखने के लिए उस फ़ोटो पर क्लिक करें
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से अक्टूबर तक देहरादून में आयोजित यूथ कैम्प के फोटोग्राफ्स।
श्री एन डी दत्ता जी के विषय में नीचे उनकी फ़ोटो के साथ सूचना पढ़ें





से अक्टूबर देहरादून में आयोजित यूथ कैम्प के फोटोग्राफ्स





मनीष बाली
गौतम मोहन और अन्य



यूथ कैम्प भ्रमण






श्री जे पी मेहता और अन्य


नरिंदर मेहता ( पानीपत ) और अन्य

राजीव छिब्बर और पी के दत्ता





श्री लाल मेहता

से अक्टूबर देहरादून में आयोजित यूथ कैम्प के फोटोग्राफ्स।



श्री रमेश दत्ता
श्री एन डी दत्ता जी के जीवन का यह अन्तिम फंक्शन थाइसी ब्लॉग में उनके निधन का समाचार देखें
**श्री एन डी दत्ता जी यूथ कैम्प से दिल्ली लौटे तो उन्हें ' पैरालैटिक-अटैक ' हो गया थाउनका दायाँ भाग काम नहीं कर रहा हैवे मैक्स हॉस्पिटल ( नई दिल्ली ) के आइ .सी.यू.में एडमिट हैंवयोवृद्ध श्री एन डी दत्ता जी मोहयाल मित्तर के इंगलिश के संपादक हैंहिन्दी के संपादक के रूप में उनके साथ कार्य करते हुए मुझे लगभग बीस वर्ष हो गए हैंमैंने इसी माह यह पद छोड़ा हैमुझे उनका स्नेह सदा मिला है
ईश्वर से प्रार्थना है वे श्री एन डी दत्ता जी को शीघ्र स्वस्थ करें (२२ अक्टूबर २००९ )
*अशोक लव जी नमस्कार,
मैंने अभी-अभी 'जय मोहयाल ' ब्लॉग पर श्री दत्ता जी की बीमारी के
बारे में पढा .देहरादून में तो वे बिलकुल भले-चंगे थे , भगवान से
प्रार्थना है कि वे जल्दी से जल्दी ठीक होकर अपने परिवार में लौटें .
नरिंदर छिब्बर
पानीपत ( २४.१०.२००९)




कमल बाली बाँसुरी वादन करते हुए