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Saturday, August 22, 2009
शिव खोड़ी में भगवान शंकर
पुराणों में शिव खोडीगुफाका उल्लेख किया गया है। मान्यता है कि एक भक्त ने शिव को प्रसन्न करने के लिए बडी तपस्या की। उसकी तपस्या का उद्देश्य शिव को प्रसन्न कर अपने लिए अमरत्व प्राप्त करना था।
शिव ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने के लिए कहा। उसने वरदान मांगा कि तीनों लोकों में मेरा कोई शत्रु न बचे। मैं जिसके सिर पर हाथ रखूं, वह तुरंत भस्म हो जाए। शिव के तथास्तु कहते ही वह शिव भक्त भस्मासुर हो गया। छिपना पडा शिव को एक कथा के अनुसार, भस्मासुर शिव की त्रिकाल शक्तियों से परिचित था, इसलिए वह सबसे पहले शिव को ही भस्म करने के लिए उनके पीछे दौडा। भस्मासुर और शिव के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इसलिए इस जगह का नाम पड गया रनसू[रणसू]। युद्ध में शंकर जी भस्मासुर को परास्त नहीं कर पाए और अपनी जान बचाने के लिए एक पहाड की ओर दौड पडे। विशाल पहाड को खोदते [बीच में से दो फाड करते] हुए उन्होंने एक गुफाबना ली और उसमें छुप कर बैठ गए। यही गुफाआज शिव खोडी[खोड] के नाम से प्रसिद्ध है। मोहिनी बने विष्णु कथा के अनुसार, उस समय समुद्र मंथन हो रहा था। देवताओं के हित के लिए विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया था। शिवजी ने उन्हें अपनी रक्षा के लिए पुकारा। मोहिनी रूप धरे विष्णु जब उस गुफाके बाहर पहुंचे, तो भस्मासुर उन पर मोहित हो गया और उनके सामने शादी का प्रस्ताव पेश कर दिया। इस पर मोहिनी बने विष्णु ने उसे अपनी ही तरह नृत्य करने के लिए कहा।
मदमस्त भस्मासुर मोहिनी के इशारों पर नाचने लगा। नाचते-नाचते उसने नृत्य की एक मुद्रा में अपना हाथ अपने सिर के ऊपर रख दिया। शिव से मिले वरदान के कारण वह तुरंत भस्म हो गया। कैसे पहुंचें रनसूपहुंचने के लिए जम्मू से 127किलोमीटर या फिर कटडा से 75किलोमीटर का सफर तय करना पडता है। इसके लिए बसें और निजी टैक्सियां आसानी से उपलब्ध होती हैं। रनसूके बाद 4किलोमीटर की आसान चढाई पैदल ही तय करनी होती है। यह चढाई शिव खोडीगुफाके प्रवेश द्वार पर खत्म होती है।
लगभग आधा किलोमीटर की तंग सुरंग को पार करने के बाद हम गुफाके भीतर पहुंच पाते हैं। गुफामें शिव परिवार की पिंडियांमौजूद हैं। इन सभी पर पहाड से बूंद-बूंद कर जल टपकता रहता है। उनके साथ राम-सीता, पांचों पांडवों, सप्त ऋषि भी पिंडियोंके रूप में मौजूद हैं। पहाड का आकार कटोरे की तरह है, जिसमें लगातार जल गिरता रहता है। खास बात यह है कि शिव खोडीगुफाअंतहीनहै।
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