नई दिल्ली। देश में छंटनी थमने का नाम नहीं ले रही है। चालू वित्त वर्ष 2009-10 के पहले तीन महीनों यानी अप्रैल-जून के दौरान एक लाख 31 हजार नौकरियां मंदी की भेंट चढ़ गई हैं। श्रम ब्यूरो के सर्वे से यह खुलासा हुआ है। यह अलग बात है कि सरकार इसके लिए मंदी को जिम्मेदार नहीं मान रही है। जिन तीन निर्यात आधारित क्षेत्रों-कपड़ा,आईटी- बीपीओ और रत्न व आभूषण पर छंटनी की सबसे ज्यादा मार पड़ी है, वही ग्लोबल मंदी से सर्वाधिक प्रभावित रहे हैं।
यह सर्वे 10 राज्यों के 21 केंद्रों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है। इनमें हरियाणा के फरीदाबाद व गुड़गांव, उत्तर प्रदेश के नोएडा, कानपुर व आगरा और पंजाब के लुधियाना व जालंधर के अलावा दिल्ली तथा चंडीगढ़ भी शामिल हैं।
सर्वे के मुताबिक इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान ठेके वाले कामगारों की स्थिति बेहतर रही। इस दौरान ठेका मजदूरों के लिए रोजगार के 40 हजार अवसर बढ़ गए। वहीं इस दौरान एक लाख 71 हजार नियमित कर्मियों ने अपनी नौकरियां गंवा दीं।
अकेले कपड़ा क्षेत्र में एक लाख 52 हजार लोग बेरोजगार हुए। आईटी-बीपीओ क्षेत्र में कार्यरत 48 हजार की रोजी-रोटी छिन गई, वहीं रत्न व आभूषण उद्योग में 23 हजार कर्मियों को निकाल दिया गया।
निर्यात यूनिटों के बुरे हाल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहली तिमाही के दौरान इनके एक लाख 67 हजार कर्मचारी छंटनी के शिकार हुए। वहीं इस दौरान गैर-निर्यात क्षेत्र में 35 हजार लोगों को नौकरी पर रखा गया। अब इन आंकड़ों को महीने के हिसाब से अलग-अलग कर देखिए। अप्रैल में 38 हजार लोग बेरोजगार हुए, जबकि मई में एक लाख 57 हजार लोगों की छंटनी हुई। हालांकि जून में नौकरियों में 64 हजार का इजाफा हुआ।
श्रम ब्यूरो ने इससे पहले अक्टूबर -दिसंबर, 08 की तिमाही में ऐसा ही एक सर्वेक्षण किया था। इस तिमाही में कुल 5 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद जनवरी से मार्च, 09 के दौरान हुए सर्वे ने रोजगार में 2.77 लाख का इजाफा होने की बात कही थी।
1 comment:
बहुत बुरी स्थिति है। इस स्थिति की संकल्पना पहले से मौजूद थी जब हम अपनी अर्थव्यवस्था को अधिकाधिक निर्यात पर आश्रित कर रहे थे। अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए जनता की क्रयशक्ति का विकास और अधिकाधिक उस पर निर्भरता जरूरी है।
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