वरं वने व्याघ्र गजेंद्रेसेचिते , द्रुमालाये पत्र फल अम्बु सेवनम् ।
त्रिनेशु श या शत जीर्ण वल्कलं , न बंधु धनहीन जीवनं ।।
जीवन को जीने के लिए धन की नितांत आवश्यकता पड़ती है। धन के बिना जीवन कष्टों से भर जाता है। जंगल में वृक्षों को घर बनाकर रहना अच्छा होता है। लताओं , पत्तों और फलों का सेवन करना अच्छा है। घास-फूस को बिछौना बनाकर सोना अच्छा है। हाथिओं के मध्य रहना अच्छा है। वल्कल वस्त्र धारण करके रहना अच्छा है।
परन्तु सगे-सम्बंधिओं के बीच धन के अभाव में अपमानजनक जीना सबसे कष्टदायक होता है। इनके बीच रहकर पल-पल अपमान के घूँट भरने पड़ते हैं।
चाणक्य कहना चाहते हैं कि इस संसार में गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है।
isa tarh se prerna dene vale shlok dete rahen.
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