ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटियों के संयुक्त प्रयास से कराई गई स्टडी में यह पाया गया कि सर्वे में शामिल 16,000 लोगों में से ज्यादातर यह महसूस करते हैं कि सांस्कृतिक विविधता देश के लिए अच्छी है, लेकिन भिन्नताएं हर किसी को आगे बढ़ने से रोक सकती हैं। यह स्टडी 11 साल तक चली है। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न सिडनी के सोशल साइंस विभाग के केविन डन ने कहा कि सर्वे में शामिल 40 पर्सेंट से ज्यादा लोगों का यह मानना है कि सांस्कृतिक भिन्नताएं सामाजिक सौहार्द के सामने एक खतरा खड़ा करती हैं।
उन्होंने कहा कि क्रोनुल्ला के दंगे और भारतीय मूल के लोगों पर हाल ही में हुए हमले इसके उदाहरण हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि 85 फीसदी ऑस्ट्रेलियाई यह स्वीकार करते हैं देश में नस्ली पूर्वाग्रह मौजूद है। डन ने कहा कि 87 फीसदी नागरिक बहुसंस्कृतिवाद समर्थक हैं और साफ तौर पर एक तिहाई लोग सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार तो करते हैं, पर वे इसके समाज पर पड़ने वाले असर से चिंतित भी हैं। अध्ययन में यह भी कहा गया कि 6.5 फीसदी ऑस्ट्रेलियाई बहुसंस्कृतिवाद के खिलाफ हैं।
सरकार की अनदेखी जिम्मेदार
डन ने कहा, मेरा मानना है कि पूर्व की सरकारों ने बीते एक दशक में इस मुद्दे से निपटने के लिए कुछ नहीं किया। सामाजिक न्याय आयुक्त टॉम काल्मा ने नस्ली भेदभाव से निपटने के लिए काम नहीं किया और सिर्फ समय बिताया। डन ने कहा कि एक दशक से सरकार ने नस्ली भेदभाव के मामलों से निपटने के लिए फुल टाइम कमिश्नर की नियुक्ति नहीं की है। धन की भारी कमी के चलते आयोग वैसी सेवाएं नहीं दे सका, जैसी उसे देने की जरूरत है।सर्वे में यह भी पाया गया कि पांच में से कम से कम एक ऑस्ट्रेलियाई के साथ विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के लिए निम्न भाषा में रखे गए नामों का इस्तेमाल कर दुर्व्यवहार किया जाता है। उन्हें गालियां दी जाती हैं या आक्रामक रुख का सामना करना पड़ता है।
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