यात्स्वस्थो हृदयं देहो यावनमृतयुश्च दूरतः ।
तावादात्महितम कुर्यात प्राण अन्ते किम् करिष्यति। ।
चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य का शरीर जब तक स्वस्थ है उसे अपने में हृदय आए शुभ कार्यों को कर लेना चाहिए । मनुष्य जब तक जीवित और स्वस्थ है वह तब तक कार्य करने में सक्षम होता है। मृत्यु न जाने कब आ जाए । तब मनुष्य शुभ कार्य करने से वंचित हो जाएगा।
चाणक्य का कहने का तात्पर्य है कि इस शरीर के रहते ही परोपकार आदि भले कार्य किए जा सकते हैं . इसके साथ- साथ शरीर के स्वस्थ रहते ही ऐसे कार्य हो सकते हैं .शरीर कब रोगग्रस्त हो जाए इसका कोई भरोसा नहीं है। इसी प्रकार कब मृत्यु हो जायेगी इसका भी कोई समय निश्चित नहीं है।
*पुस्तक - चाणक्य नीति , सम्पादक- अशोक लव
1 comment:
PRERNADAYAK VICHAR HAIN.ISEE TARAH KE VICHAR APNEE PUSTAK SE HAM SAB KE LIYE DETE RAHEN.
DHANYAVAD !
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