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Thursday, March 22, 2012

नव संवत्सर २०६९

नव संवत्सर २०६९

22 Mar 2012, नवभारतटाइम्स.कॉम
आनंद जोहरी
ज्योतिषी और आध्यात्मिक चिंतक

23 मार्च , 2012 , शुक्रवार को हिंदू कैलेंडर का नववर्ष दस्तक देगा। संवत 2069 अस्तित्व में आएगा. संवत 2068 , जिसका नाम था ' क्रोधी ', वह इतिहास के आगोश में विलीन हो जाएगा।

नवीन संवत 2069 जिसका नाम ' विश्वावसु ' है , यह कई नए संकेतों के साथ आ रहा है। संभव है देश को मध्यावधि चुनाव भी झेलना पड़े। राहू के स्वामित्व वाला व शुक्र के नेतृत्व वाला यह वर्ष क्या गुल खिलाएगा , आइए करते हैं इसका विश्लेषण :-

23 मार्च , 2012 , शुक्रवार यानी चैत्रमास के शुक्लपक्ष की प्रथम तिथि। नए संवत्सर 2069 का प्रथम दिवस। इस नवीन श्री संवत का नाम है ' विश्वावसु ', जिसके अधिष्ठाता ग्रह राहू हैं। राहू , जो अपनी विपरीत विचारधारा , अपार मानसिक क्षमता और नकारात्मक प्रवृत्ति के लिए जाने और पहचाने जाते हैं , ज्योतिष में उन्हें पापी ग्रहों में शुमार किया जाता है।
नव संवत्सर 2069 विश्वावसु की कुंडली

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नए संवत ' विश्वावसु ' के राजा और मंत्री दोनों पदों पर इस बार दैत्य गुरु श्री शुक्र देव जी महाराज आसीन हैं , जो आनंद , ऐश्वर्य , प्रेम , स्त्री-पुरुष संबंधों और भौतिक प्रवृत्ति के स्वामी हैं। नवीन वर्ष पिछले संवत ' क्रोधी ' से थोड़ा सा भिन्न प्रतीत हो रहा है। शुक्रदेव के नेतृत्व वाला यह वर्ष लोगों के हृदय में प्रेम उत्पन्न करने की कोशिश तो करेगा। साथ ही स्वामी ग्रह के कौशल से इस वर्ष में अलग-अलग तरह की परिस्थितियां उत्पन्न होंगी , जो निश्चित तौर पर आम और खास दोनों को प्रभावित करेंगी।

नए वर्ष में भौतिक प्रवृत्ति का बोल-बाला रहेगा। जनमानस की भौतिक आकांक्षाओं में बढ़ोतरी का योग है। कीमतों में भारी बढ़ोतरी के कारण महंगाई के बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। संपत्ति में कुछ तेजी नजर आ रही है। सफेद वस्तु जैसे शक्कर , चांदी इत्यादी के उत्पादन या सप्लाई में बढ़ोतरी तथा कीमतों में कुछ कमी के लक्षण दिखाई दे रहें हैं। आकाशीय मंत्रिमंडल में शुक्र की प्रभुता इस पूरे साल में आम आदमी को चैन नहीं लेने देगी।

तुला का शनि पश्चिमी देशों पर मंदी की चादर फैलाने के बाद भारत सहित अन्य देशों को भी अपने चंगुल में लेने की कोशिश तो करेगा पर वर्ष कुंडली में शनिदेव शुक्र के घर में , द्वितीय भाव में आसीन हैं और बृहस्पति मेष राशि में बैठकर शनि को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं , इसलिए 15 मई तक जनमानस पर मंदी का बहुत बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इस वर्ष शुक्र और केतु की युति होने से अनाज के भावों में तेजी के संकेत मिलेंगे , लेकिन मीन में बुध होने से उत्तर दिशा में उत्पादन अच्छा होगा। रसीले फलों की पैदावार अच्छी रहेगी , लेकिन शुक्र के राजा होने से फसलों और फलों के नष्ट होने या नुकसान होने की बहुत अधिक संभावना रहेगी।

13 अप्रैल से सूर्य-गुरु की युति होने और शुक्र देव के मंत्री पद पर आसीन होने से कुछ राष्ट्रों में आपसी संबंधों में सुधार की प्रक्रिया सहसा तेज हो जाएगी। भारत की कुंडली के संबंध में बात करें , तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में तेजी के संकेत हैं।

तुलसी का पौधा :महत्त्व

Bakshi Richa Sumit Vaid
अधिकांश हिंदू घरों में तुलसी का पौधा अवश्य ही होता है। तुलसी घर के आंगन में लगाने की प्रथा हजारों साल पुरानी है। तुलसी को दैवी का रूप माना जाता है। साथ ही मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घरवालों से दूर ही रहती है।

तुलसी का पौधा होने से घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और कीटाणुओं से मुक्त रहता है। कभी-कभी किसी कारण से यह पौध सूख भी जाता है ऐसे में इसे घर में नहीं रखना चाहिए बल्कि इसे किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करके दूसरा तुलसी का पौधा लगा लेना चाहिए। सुखा हुआ तुलसी का पौधा घर में रखना कई परिस्थितियों में अशुभ माना जाता है। इससे विपरित परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं। घर की बरकत पर बुरा असर पड़ सकता है। इसी वजह से घर में हमेशा पूरी तरह स्वस्थ तुलसी का पौधा ही लगाया जाना चाहिए।


तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बुटि के समान माना जाता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी के बैक्टेरिया आदि को नष्ट कर देती है। तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही तुलसी की एक पत्ती रोज सेवन करने से हमें कभी बुखार नहीं आएगा और इस तरह के सभी रोग
हमसे सदा दूर रहते हैं। तुलसी की पत्ती खाने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।

Wednesday, March 21, 2012

Navratra:Maan Durga Ke Nau Roop

The nine-day period from the new moon day to the ninth day of Ashvina is considered the most auspicious time of the Hindu Calendar and is hence the most celebrated time of the year as Durga Puja. The nine different forms of Devi are worshiped over the nine days. These are the most popular forms under which she is worshiped:
Durga Shailputri (Daughter of Mountain) शैलपुत्री
She is a daughter of Himalaya and first among nine Durgas. In previous birth she was the daughter of Daksha. Her name was Sati – Bhavani. i.e. the wife of Lord Shiva. Once Daksha had organized a big Yagna and did not invite Shiva. But Sati being obstinate, reached there. Thereupon Daksha insulted Shiva. Sati could not tolerate the insult of husband and burnt herself in the fire of Yagna. In other birth she became the daughter of Himalaya in the name of Parvati – Hemvati and got married with Shiva. As per Upnishad she had torn and the egotism of Indra, etc. Devtas. Being ashamed they bowed and prayed that, “In fact, thou are Shakti, we all – Brahma, Vishnu and Shiv are capable by getting Shakti from you.”
ब्रह्मचारिणी :Brahmacharini
The second Durga Shakti is Brahamcharini. Brahma that is who observes penance(tapa) and good conduct. Here “Brahma” means “Tapa”. The idol of this Goddess is very gorgeous. There is rosary in her right hand and Kamandal in left hand. She is full with merriment. One story is famous about her. In previous birth she was Parvati Hemavati the daughter of Himvan. Once when she was busy in games with her friends. Naradaji came to her and predicted seeing her Palm-lines that, “You will get married with a naked-terrible ‘Bhole baba’ who was with you in the form of Sati, the daughter of Daksh in previous birth. But now you have to perform penance for him.” There upon Parvati told her mother Menaka that she would marry none except Shambhu, otherwise she would remain unmarried. Saying this she went to observe penance. That is why her name is famous as tapacharini – Brahmacharini. From that time her name Uma became familiar.
चंद्रघंटा :Chandraghanta
The name of third Shakti is Chandraghanta. There is a half-circular moon in her forehead. She is charmful and bright. She is Golden color. She has three eyes and ten hands holding with ten types of swords – etc. weapons and arrows etc. She is seated on Lion and ready for going in war to fight. She is unprecedented image of bravery. The frightful sound of her bell terrifies all the villains, demons and danavas.
कुष्मांडा: Kushmanda
Name of fourth Durga is Kushmanda. The Shakti creates egg, ie. Universe by mere laughing .She resides in solar systems. She shines brightly in all the ten directions like Sun. She has eight hands. Seven types of weapons are shining in her seven hands. Rosary is in her right hand. She seems brilliant riding on Lion. She likes the offerings of “Kumhde.” Therefore her name “Kushmanda” has become famous.
स्कंदमाता Skanda Mata
Fifth name of Durga is “Skanda Mata”. The daughter of Himalaya, after observing penance got married with Shiva. She had a son named “Skanda.” Skanda is a leader of the army of Gods. Skanda Mata is a deity of fire. Skanda is seated in her lap. She has three eyes and four hands. She is white and seated on a lotus.
कात्यायनी :Katyayani
Sixth Durga is Katyayani. The son of “Kat” as “Katya”. Rishi Katyayan born in this “Katya” lineage. Katyayan had observed penance with a desire to get paramba as his daughter. As a result she took birth as a daughter of Katyayan. Therefore her name is “Katyayani” . She has three eyes and eight hands. These are eight types of weapons missiles in her seven hands. Her vehicle is Lion.

कालरात्रि
Seventh Durga is Kalratri. She is black like night. Durga hairs are unlocked. She has put on necklaces shining like lightening. She has three eyes which are round like universe. Her eyes are bright. Thousands of flames of fire come out while respiring from nose. She rides on Shava (dead body). There is sharp sword in her right hand. Her lower hand is in blessing mood. The burning torch (mashal) is in her left hand and her lower left hand is in fearless style, by which she makes her devotees fearless. Being auspicious she is called “Shubhamkari.”
महागौरी :Maha Gauri
The Eighth Durga is “Maha Gauri.” She is as white as a conch, moon and Jasmine. She is of eight years old. Her clothes and ornaments are white and clean. She has three eyes. She rides on bull She has four hands. The above left hand is in “Fearless – Mudra” and lower left hand holds “Trishul.” The above right hand has tambourine and lower right hand is in blessing style. She is calm and peaceful and exists in peaceful style. It is said that when the body of Gauri became dirty due to dust and earth while observing penance, Shiva makes it clean with the waters of Gangas. Then her body became bright like lightening. There fore, she is known as “Maha Gauri” सिद्धदात्री:Siddhidatri
Ninth Durga us Siddhidatri. There are eight Siddhis , they are- Anima, Mahima, Garima, Laghima, Prapti, Prakamya, Iishitva & Vashitva. Maha Shakti gives all these Siddhies. It is said in “Devipuran” that the Supreme God Shiv got all these Siddhies by worshipping Maha Shakti. With her gratitude the half body of Shiv has became of Goddess and there fore his name “Ardhanarishvar” has became famous. The Goddess drives on Lion. She has four hands and looks pleased. This form of Durga is worshiped by all Gods, Rishis-Munis, Siddhas, Yogis, Sadhakas and devotees for attaining the best religious asset.
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Tuesday, March 20, 2012

स्वागत विक्रम संवत 2069 :22 मार्च 2012

हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष २२ मार्च २०१२ गुरुवार को शाम ७ बजकर १० मिनिट को विक्रम संवत २०६९ का प्रारम्भ कन्या लग्न में हो रहा है .
विश्वावसु नामक इस संवत्सर का स्वामी राहू है .भारतीय पंचांग और काल का निर्धारण इसी विक्रम संवत से किया जाता है . ऐसी पौराणिक मान्यता है कि आज से १ अरब ९७ करोड़ ३९ लाख ४९ हजार ११० वर्ष पूर्व सृष्टि के इस प्रथम दिन से ही ब्रह्माजी ने जगत ( ब्रह्माण्ड ) की रचना की थी .
नवरात्र का प्रथम दिन है . दक्षिण भारत में भी महान पराक्रमी राजा शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर अपने राज्य की स्थापना भी आज के दिन ही की थी . विश्व प्रसिद्ध , पांडव धर्मराज युधिष्टर ने भी अपने राज्य की स्थापना आज से ५१११ वर्ष पूर्व इसी दिन की थी .
नव वर्ष के दिन की शुरुआत अपने माता - पिता - बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर एवं मीठा खाकर करें . इस पवित्र दिवस पर अपने घरों पर नई ध्वजा ( पताका ) लगानी चाहिए . प्रातः काल विशेष सफाई के उपरांत तोरण , बंदनवार , फूलमाला आदि से सजा कर अपने गृह - मंदिर की पूजा घी के दीपक और शुद्ध धूप को जला कर करनी चाहिए . ( अगरबत्ती का प्रयोग शास्त्रानुसार निषिद्ध है क्योंकि इसके निर्माण में बांस का प्रयोग होता है और बांस में भगवान विष्णु का वास माना गया है ) आज से ही सार्वजनिक प्याऊ का प्रारम्भ भी करना चाहिए .
समस्त कुल देव - कुल देवी अति शुभ का आशीर्वाद प्रदान कर आपके - हमारे सम्पूर्ण परिवार , समाज , क्षेत्र , राष्ट्र व सम्पूर्ण विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करें , सद्बुद्धि विकसित करें , साहस और स्फूर्ति में वृद्धि करें , जननी जन्म भूमि के प्रति हमारे कर्तव्यों को जागृत करें .