'श्री राम सदैव प्रासंगिक रहेंगे’ - सर्वभाषा ट्रस्ट के वेबिनार में श्री राम छाए रहे.
श्री राम जन्मभूमि शिलान्यास के अवसर पर सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा 4 और 5 अगस्त को ‘सामयिक पस्थितियों में श्री राम की प्रासंगिकता’ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया, जिसमें देश-विदेश के विद्वानों, प्राध्यापकों और शिक्षाविदों ने भाग लिया।
अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में पहले दिन वाराणसी के प्रख्यात विद्वान डाॅ. अर्जुन तिवारी मुख्य अतिथि थे। जबकि सर्वभाषा ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री अशोव लव जी ने दोनों दिन अध्यक्षता की। दूसरे दिन के मुख्य अतिथि पटना के श्रीराम कथा मर्मज्ञ, ज्योतिष श्री मार्कण्डेय शारदेय जी थे। पहले दिन के वक्ताओं में डाॅ. सुमन सिंह, डाॅ. रचना शर्मा, श्री यशपाल निर्मल और सर्वभाषा ट्रस्ट के समन्वयक केशव मोहन पाण्डेय थे जबकि दूसरे दिन मार्कण्डेय शारदेय, श्री अशोक लव, श्री राकेश मल्होत्रा (शिकागो, अमेरिका), एयर मार्शल लालजी वर्मा, डाॅ. मोनिका शर्मा, डाॅ. विवेक पाण्डेय आदि का वक्तव्य हुआ।
वेबिनार की शुरुआत भी श्रीराम भजन से की गई, तत्पश्चात हिंदी-भोजपुरी के साहित्यकार जे.पी. द्विवेदी ने सभी वक्ताओं व अतिथियों का स्वागत किया। प्रथम वक्ता के रूप में डाॅ. सुमन सिंह ने कहा कि राम भारतीय मनीषा के चिंतन के चरम हैं। राम परम शक्ति हैं। वे त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। श्रीराम ने जीवन भर त्याग किया। वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. अर्जुन तिवारी ने कहा कि जिसने राम को स्पर्श किया, उसका जीवन स्वर्ण हो गया। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, जिसे राम ने स्पर्श किया, उसे स्वर्णिम बना दिया। राम आर्यावर्त के प्रथम पुरुष थे जिन्होंने संपूर्ण राष्ट्र को एक उन्नत दिशा दी।
अध्यक्षता कर रहे सर्वभाषा ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक लव ने कहा कि विश्व के कोने-कोने में जहाँ-जहाँ भारतीय हैं, वहाँ-वहाँ श्री राम रहेंगे, भारतीय संस्कृति रहेगी। राम राजधर्म को स्थापित करने वाले सबसे बढ़े शासक भी हैं और पालक भी हैं। अगली वक्ता के रूप में बोलते हुए डाॅ. रचना शर्मा जी ने कहा कि राम वास्तविक चरित्र के नायक हैं राम का चरित्र समग्र भारतीय चेतना, जीवन-दृष्टि को समृद्ध करने वाला चरित्र है। केशव मोहन पाण्डेय ने कहा कि श्री राम भारतीय जनमानस के अंतःकरण में बसा नाम है। राम का नाम जन-जन को क्षण-क्षण प्रेरित करता है।
दूसरे दिन की शुरुआत श्री राकेश मल्होत्रा (शिकागो, अमेरिका), के वक्तव्य से हुई। उन्होंने बताया कि राम नर से नारायण बनने का साक्षात उदाहरण हैं। उनकी नैतिकता हमें उर्जा देती है। उनका हर कार्य हमारे विवेक को जगाता है। वे धैर्य की प्रतिमूर्ति हैं। सर्वभाषा ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री अशोक लव ने कहा कि व्यक्ति जीवन में एक आश्रय ढूँढता है कि कौन व्यक्ति ऐसा है, कौन महान हुआ जिनके जीवन-चरित को हम अपने जीवन में उतारें तो उचित संबल मिलेगा। यही होती है प्रासंगिकता। आज कोविड की महामारी हो या सामान्य दिनों की बात, श्री राम ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्हें हर व्यक्ति सदा स्वयं में उतारना चाहता है। मार्कण्डेय शारदेय जी ने कहा कि राम केवल पूजनीय नहीं, अनुकरणीय भी हैं। उन्हें ब्रह्म मानकर केवल पूजनीय ही नहीं रखा जाय। जब तक राम अनुकरणीय नहीं रहेंगे, हमारा चारित्रिक विकास नहीं होगा। एयर मार्शल लाल जी वर्मा ने कहा कि राम की प्रासंगिकता सदियों पुरानी है और सदियों तक रहेगी। केशव मोहन पाण्डेय ने कहा कि राम ने अपने साहस के बल पर सामान्य जन के कष्टों की अनुभूति करने के साथ ही आदर्श की भी स्थापना की। सबका साथ दिया, सबका साथ लिया भी। चित्रकूट में वास करते समय भेद रहित होकर कोल-भीलों का साहचर्य लिया, - ‘कोल किरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सुहाए।।/बरनि न जाहिं मंजु दुइ साला। एक ललित लघु एक बिसाला।।’ आज अयोध्या में भूमिपूजन भी सबके साथ से ही संभव हुआ है।
श्री राम जन्मभूमि शिलान्यास के अवसर पर सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा 4 और 5 अगस्त को ‘सामयिक पस्थितियों में श्री राम की प्रासंगिकता’ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया, जिसमें देश-विदेश के विद्वानों, प्राध्यापकों और शिक्षाविदों ने भाग लिया।
अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में पहले दिन वाराणसी के प्रख्यात विद्वान डाॅ. अर्जुन तिवारी मुख्य अतिथि थे। जबकि सर्वभाषा ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री अशोव लव जी ने दोनों दिन अध्यक्षता की। दूसरे दिन के मुख्य अतिथि पटना के श्रीराम कथा मर्मज्ञ, ज्योतिष श्री मार्कण्डेय शारदेय जी थे। पहले दिन के वक्ताओं में डाॅ. सुमन सिंह, डाॅ. रचना शर्मा, श्री यशपाल निर्मल और सर्वभाषा ट्रस्ट के समन्वयक केशव मोहन पाण्डेय थे जबकि दूसरे दिन मार्कण्डेय शारदेय, श्री अशोक लव, श्री राकेश मल्होत्रा (शिकागो, अमेरिका), एयर मार्शल लालजी वर्मा, डाॅ. मोनिका शर्मा, डाॅ. विवेक पाण्डेय आदि का वक्तव्य हुआ।
वेबिनार की शुरुआत भी श्रीराम भजन से की गई, तत्पश्चात हिंदी-भोजपुरी के साहित्यकार जे.पी. द्विवेदी ने सभी वक्ताओं व अतिथियों का स्वागत किया। प्रथम वक्ता के रूप में डाॅ. सुमन सिंह ने कहा कि राम भारतीय मनीषा के चिंतन के चरम हैं। राम परम शक्ति हैं। वे त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। श्रीराम ने जीवन भर त्याग किया। वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. अर्जुन तिवारी ने कहा कि जिसने राम को स्पर्श किया, उसका जीवन स्वर्ण हो गया। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, जिसे राम ने स्पर्श किया, उसे स्वर्णिम बना दिया। राम आर्यावर्त के प्रथम पुरुष थे जिन्होंने संपूर्ण राष्ट्र को एक उन्नत दिशा दी।
अध्यक्षता कर रहे सर्वभाषा ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक लव ने कहा कि विश्व के कोने-कोने में जहाँ-जहाँ भारतीय हैं, वहाँ-वहाँ श्री राम रहेंगे, भारतीय संस्कृति रहेगी। राम राजधर्म को स्थापित करने वाले सबसे बढ़े शासक भी हैं और पालक भी हैं। अगली वक्ता के रूप में बोलते हुए डाॅ. रचना शर्मा जी ने कहा कि राम वास्तविक चरित्र के नायक हैं राम का चरित्र समग्र भारतीय चेतना, जीवन-दृष्टि को समृद्ध करने वाला चरित्र है। केशव मोहन पाण्डेय ने कहा कि श्री राम भारतीय जनमानस के अंतःकरण में बसा नाम है। राम का नाम जन-जन को क्षण-क्षण प्रेरित करता है।
दूसरे दिन की शुरुआत श्री राकेश मल्होत्रा (शिकागो, अमेरिका), के वक्तव्य से हुई। उन्होंने बताया कि राम नर से नारायण बनने का साक्षात उदाहरण हैं। उनकी नैतिकता हमें उर्जा देती है। उनका हर कार्य हमारे विवेक को जगाता है। वे धैर्य की प्रतिमूर्ति हैं। सर्वभाषा ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री अशोक लव ने कहा कि व्यक्ति जीवन में एक आश्रय ढूँढता है कि कौन व्यक्ति ऐसा है, कौन महान हुआ जिनके जीवन-चरित को हम अपने जीवन में उतारें तो उचित संबल मिलेगा। यही होती है प्रासंगिकता। आज कोविड की महामारी हो या सामान्य दिनों की बात, श्री राम ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्हें हर व्यक्ति सदा स्वयं में उतारना चाहता है। मार्कण्डेय शारदेय जी ने कहा कि राम केवल पूजनीय नहीं, अनुकरणीय भी हैं। उन्हें ब्रह्म मानकर केवल पूजनीय ही नहीं रखा जाय। जब तक राम अनुकरणीय नहीं रहेंगे, हमारा चारित्रिक विकास नहीं होगा। एयर मार्शल लाल जी वर्मा ने कहा कि राम की प्रासंगिकता सदियों पुरानी है और सदियों तक रहेगी। केशव मोहन पाण्डेय ने कहा कि राम ने अपने साहस के बल पर सामान्य जन के कष्टों की अनुभूति करने के साथ ही आदर्श की भी स्थापना की। सबका साथ दिया, सबका साथ लिया भी। चित्रकूट में वास करते समय भेद रहित होकर कोल-भीलों का साहचर्य लिया, - ‘कोल किरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सुहाए।।/बरनि न जाहिं मंजु दुइ साला। एक ललित लघु एक बिसाला।।’ आज अयोध्या में भूमिपूजन भी सबके साथ से ही संभव हुआ है।